शक वंश
From जैनकोष
मगध देश की राज्य वंशावली के अनुसार यह एक छोटी-सी जाति थी। इस जाति का कोई भी एकछत्र राज्य नहीं था। इस वंश में छोटे-छोटे सरदार होते थे जो धीरे-धीरे करके भारतवर्ष के किन्हीं-किन्हीं भागों पर अपना अधिकार जमा बैठे थे, जिसके कारण मौर्यवंशी विक्रमादित्य का राज्य छिन्न-भिन्न हो गया था। भृत्यवंशी गौतमी पुत्र साल्कणी (शालिवाहन) ने वी.नि.६०५ में शक संवत् प्रचलित किया था। जो पीछे से शक संवत् कहलाने लगा। इसके सरदारों का नाम इतिहास में नहीं मिलता है। हाँ, आगमकारों ने उनका उल्लेख किया है जो निम्न प्रकार है―
- पुष्यमित्र वी.नि.२५५-२८५ ई.पू. २७१-२४६
- वसुमित्र वी.नि.२८५५-३१५ ई.पू. २४६-२११
- अग्निमित्र वी.नि.३१५-३४५ ई.पू. २११-१८१
- गर्दभिल्ल वी.नि.३४५-४४५ ई.पू. १८१-८१
- नरवाहन वी.नि.४४५-४८५ ई.पू. ८१-४१
(विशेष-देखें - इतिहास /मगध के राज्य वंश) नरवाहन की वी.नि.६०५ में शालिवाहन द्वारा हारने की संगति के लिए भी- देखें - इतिहास / ३ / ४ )।