शिव
From जैनकोष
== सिद्धांतकोष से == भूतकालीन तेरहवें तीर्थंकर - देखें तीर्थंकर - 5।
स.श./टी.2/222/25 शिवं परमसौख्यं परम कल्याणं निर्वाणं चोच्यते। = परम कल्याण अथवा परम सौख्यमय निर्वाण को शिव कहते हैं।
स.सा./ता.वृ./373-382/462/18 वीतरागसहजपरमानन्दरूपं शिवशब्दवाच्यं सुखं = वीतराग परमानन्द रूप सुख शिव शब्द का वाच्य है। (प.प्र./टी./2/9)।
द्र.सं./टी./14/47 पर उद्धृत-शिवं परमकल्याणं निर्वाणं ज्ञानमक्षयम् । प्राप्तं मुक्तिपदं येन स शिव: परिकीर्तित:।1। इति श्लोक कथितलक्षण: शिव:। = शिव यानी परम कल्याण निर्वाण एवं अक्षय ज्ञान रूप मुक्त पद को जिसने प्राप्त किया वह शिव कहलाता है।
भा.पा./टी./149/193/6 शिव: परमकल्याणभूत: शिवति लोकाग्रे गच्छतीति शिव:। = शिव: अर्थात् परम कल्याणभूत होता है, और लोक के अग्र भाग में जाता है वह शिव है।
पुराणकोष से
(1) भरतेश और सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 24.44, 25.74, 105
(2) राम का एक योद्धा । पद्मपुराण 58.14, 17
(3) समवसरण के तीसरे कोट के दक्षिण द्वार का एक नाम । हरिवंशपुराण 57.58
(4) लवणसमुद्र की दक्षिण दिशा में पाताल विवर के समीप स्थित उदक पर्वत का अधिष्ठाता देव । हरिवंशपुराण 5.461