सप्त कुंभ
From जैनकोष
ह.पु./34/90 इसकी विधि तीन प्रकार कही गयी है‒उत्तम, मध्यम व जघन्य। विधि‒1. उत्तम‒क्रमश: 16,15,14,13,12,11,10,9,8,7,6,5,4,3,2,1; 15,14,13,12,11,10,9,8,7,6,5,4,3,2,1; 15,14,13,12,11,10,9,8,7,6,5,4,3,2,1; 15,14,13,12,11,10,9,8,7,6,5,4,3,2,1‒इस प्रकार एक हानिक्रम से एक बार 16 से 1 तक और इससे आगे 3 बार 15 से एक तक कुल 496 उपवास करे। बीच के (1) वाले 61 स्थानों में सर्वत्र एक एक पारणा करे। 2. मध्यम‒ह.पु./34/89 सर्वविधि उपरोक्त ही प्रकार है। अन्तर इतना है कि यहाँ 16 की बजाय 9 उपवासों से प्रारम्भ करना। एक बार 9 से 1 तक और इससे आगे 3 बार 8 से 1 तक एक हानि क्रम से कुल 153 उपवास करे। बीच के 33 स्थानों में एक-एक पारणा करे। जघन्य‒ह.पु./34/88 क्रमश: 5,4,3,2,1; 4,3,2,1; 4,3,2,1; 4,3,2,1 इस प्रकार 45 उपवास करे। बीच के 17 स्थानों में एक-एक पारणा करे। तथा तीनों ही विधियों में नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप करे। (व्रतविधान संग्रह/56)।