स्नातक
From जैनकोष
== सिद्धांतकोष से ==
1. स्नातक साधु का लक्षण
स.सि./9/46/460/11 प्रक्षीणघातिकर्माण: केवलिनो द्विविधा: स्नातका:। = जिन्होंने चार घातिया कर्मों का नाश कर दिया है, ऐसे दोनों प्रकार के केवली स्नातक कहलाते हैं। (रा.वा./9/46/5/636/3); (चा.सा./102/2)।
त.सा./8/24 तत: क्षीणचतुष्कर्माप्राप्तोऽथाख्यातसंयमम् । बीजबन्धननिर्मुक्त: स्नातक:। = चारों घातियाकर्म नष्ट होते ही यथाख्यात संयम की प्राप्ति होती है। बीज के समान बन्ध का निर्मूल नाश होने से बन्धन रहित हुए योगी स्नातक कहाने लगते हैं।
* स्नातक साधु सम्बन्धी विषय-देखें साधु - 5।
पुराणकोष से
(1) साधु का एक भेद-घातिया कर्मों को नाश कर केवलज्ञान प्रकट करने वाले साधु । ये चार प्रकार के शुक्लध्यानों में उत्तरवर्ती दो परम शुक्लध्यानों के स्वामी होते हैं । महापुराण 21.120-188
(2) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.112