स्पर्श सामान्य निर्देश
From जैनकोष
स्पर्श सामान्य निर्देश
1. अमूर्त से मूर्त का स्पर्श कैसे सम्भव है
ध.4/1,4,1/143/3 अमुत्तेण आगासेण सह सेसदव्वाणं मुत्ताणममुत्ताणं वा कधं पोसो। ण एस दोसो, अवगेज्झावगाहभावस्सेव उवयारेण फासववएसादो, सत्त-पमेयत्तादिणा अण्णोण्णसमाणत्तणेण वा।... अमुत्तेण कालदव्वेण सेसदव्वाणं जदि वि पासो णत्थि, परिणामिज्जमाणाणि सेसदव्वाणि परिणत्तेण कालेण पुसिदाणि त्ति उवयारेण कालफोसणं वुच्चदे। =प्रश्न-अमूर्तआकाश के साथ शेष अमूर्त और मूर्त द्रव्यों का स्पर्श कैसे सम्भव है ? उत्तर-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि अवगाह्य अवगाहक भाव को ही उपचार से स्पर्श संज्ञाप्राप्त है, अथवा सत्त्व प्रमेयत्व आदि के द्वारा मूर्त द्रव्य के साथ अमूर्त द्रव्य की परस्पर समानता होने से भी स्पर्श का व्यवहार बन जाता है।...यद्यपि अमूर्तकालद्रव्य के साथ शेष द्रव्यों का स्पर्शन नहीं है, तथापि परिणमित होने वाले शेष द्रव्य परिणामत्व की अपेक्षा काल से स्पर्शित हैं, इस प्रकार से उपचार से काल स्पर्शन कहा जाता है।
2. क्षेत्र व काल स्पर्श का अन्तर्भाव द्रव्य स्पर्श में क्यों नहीं
ध.4/1,4,1/144/4 खेत्तकालपोसणाणिदव्वफोसणम्हि किण्ण पदंति त्ति वुत्ते ण पदंति, दव्वादो दव्वेगदेसस्स कधंचि भेदुवलंभादो। =प्रश्न-क्षेत्रस्पर्शन और कालस्पर्शन ये दोनों स्पर्शन, द्रव्य स्पर्शन में क्यों नहीं अन्तर्भूत होते हैं ? उत्तर-अन्तर्भूत नहीं होते हैं, क्योंकि, द्रव्य से द्रव्य के एकदेश का कथंचिद् भेद पाया जाता है।