आगम
From जैनकोष
आचार्य परम्परासे आगत मूल सिद्धान्तको आगम कहते हैं।
जैनागम यद्यपि मूलमें अत्यन्त विस्तृत है पर काल दोषसे इसका अधिकांश भाग नष्ट हो गया है। उस आगमकी सार्थकता उसकी शब्दरचनाके कारण नहीं बल्कि उसके भाव प्रतिपादनके कारण है। इसलिए शब्द रचनाको उपचार मात्रसे आगम कहा गया है। इसके भावको ठीक-ठीक ग्रहण करनेके लिए पाँच प्रकारसे इसका अर्थ करनेकी विधि है - शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ, आगमार्थ व भावार्थ, शब्दका अर्थ यद्यपि क्षेत्र कालादिके अनुसार बदल जाता है पर भावार्थ वही रहता है, इसीसे शब्द बदल जाने पर भी आगम अनादि कहा जाता है आगम भी प्रमाण स्वीकार किया गया है क्योंकि पक्षपात रहित वीतराग गुरुओं द्वारा प्रतिपादित होनेसे पूर्वापर विरोधसे रहित है। शब्द रचनाकी अपेक्षा यद्यपि वह पौरुषेय है पर अनादिगत भावकी अपेक्षा अपौरुषेय है। आगमकी अधिकतर सूत्रोमें होती है क्योंकि सूत्रों द्वार बहुत अधिक अर्थ थोड़े शब्दोमें ही किया जाना सम्भव है। पीछेसे अल्पबुद्धियोंके लिए आचार्योंने उन सूत्रोंकी टीकाएँ रची हैं। वे ही टीकाएँ भी उन्हीं मूल सूत्रोंके भावका प्रतिपादन करनेके कारण प्रामाणिक हैं।
१. आगम सामान्य निर्देश :-
1. आगम सामान्यका लक्षण
2. आगमाभासका लक्षण
3. नोआगमका लक्षण
• आगम व नोआगमादि द्रव्य भाव निक्षेप तथा स्थित जित आदि द्रव्य निक्षेप - देखे निक्षेप
• आगमकी अनन्तता - देखे आगम १/११
• आगमके नन्दा भद्रा आदि भेद - देखे वाचना
4. शब्द या आगम प्रमाणका लक्षण
5. शब्द प्रमाणका श्रुतज्ञानमें अन्तर्भाव
6. आगम अनादि है
7. आगम गणधरादि गुरु परम्परा से आगत है
8. आगम ज्ञानके अतिचार
9. श्रुतके अतिचार
10. द्रव्य श्रुतके अपुनरूक्त अक्षर
11. श्रुतका बहुत कम भाग लिखनेमें आया है
12. आगमकी बहुत सी बातें नष्ट हो चुकी हैं
13. आगमके विस्तारका कारण
14. आगमके विच्छेद सम्बन्धी भविष्यवाणी
• आगमके चारों अनुयोगों सम्बन्धी - देखे अनुयोग
• मोक्षमार्गमें आगम ज्ञानका स्थान - देखे स्वाध्याय
• आगम परम्पराकी समयानुक्रमिक सारणी - दे इतिहास/७
• आगम ज्ञानमें विनयका स्थान - देखे विनय /२
• आगमके आदान प्रदानमें पात्र अपात्रका विचार - देखे उपदेश /३
• आगमके पठन पाठन सम्बन्धी - देखे स्वाध्याय
• पठित ज्ञानके संस्कार साथ जाते हैं - देखे संस्कार
२. द्रव्य भाव और ज्ञान निर्देश व समन्वय :-
• आगमके ज्ञानमें सम्यक्दर्शनका स्थान - देखे ज्ञान III/२
• आगम ज्ञानमें चारित्रका स्थान - देखे चारित्र ५
1. वास्तवमें भाव श्रुत ही ज्ञान है द्रव्यश्रुत ज्ञान नहीं
2. भावका ग्रहण ही आगम है
• श्रुतज्ञानके अंग पूर्वादि भेदोंका परिचय - देखे श्रुतज्ञान III
3. द्रव्य श्रुतको ज्ञान कहनेका कारण
4. द्रव्य श्रुतके भेदादि जाननेका प्रयोजन
5. आगमोंको श्रुतज्ञान कहना उपचार है
• निश्चय व्यवहार सम्यग्ज्ञान - देखे ज्ञान IV
३. आगमका अर्थ करनेकी विधि :-
1. पाँच प्रकार अर्थ करनेका विधान
• शब्दार्थ - देखे आगम /४
2. मतार्थ करनेका कारण
3. नय निक्षेपार्थ करनेकी विधि
• सूक्ष्मादि पदार्थ केवल आगम प्रमाणसे जाने जाते हैं, वे तर्कका विषय नहीं - देखे न्याय /१