आयतन
From जैनकोष
१. आयतन व अनायतनका लक्षण बोधपाहुड़ / मूल या टीका गाथा संख्या ५-७ मणवयणकायदव्वा आसता जस्स इंदिया विसया। आयदणं जिणमग्गे णिद्दिट्ठं संजय रूवं ।।५।। मय राय दोस मोहो कोहो लोहो य जस्स आयात्ता। पंचमहव्वयधरा आयदणं महरिसी भणियं ।।६।। सिद्धं जस्स सदत्थं विसुद्धझाणस्स णाणजुत्तस्स। सिद्धायदणं सिद्धं मुणिवरवसहस्स मुणिदत्थं ।।७।। = जिन मार्ग विषै संयम सहित मुनिरूप है सो आयतन कहा है। कैसा है मुनिरूपजाके, मन, वचन, काय तथा पंचेन्द्रियोंके विषय अधीन हैं अर्थात् जो इनके वश नहीं है परन्तु यह ही जिनके वशीभूत हैं ।।५।। जाकै मद, राग, द्वेष, मोह, क्रोध और माया से सर्व निग्रह कूँ प्राप्त भये हैं, बहुरि पाँच महाव्रतोंको धारण करनेवाले हैं ।।६।। जाकै सदर्थ अर्थात् शुद्धात्मा सिद्ध भया है, जो विशुद्ध शुक्लध्यान कर युक्त हैं। जिन्हें केवलज्ञान प्राप्त भया है, जो मुनिवर वृषभ अर्थात् मुनियोंमें प्रधान हैं ऐसे भगवान् भी सिद्धायतन हैं ।।७।। द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा संख्या ४१/६९ सम्यक्त्वादिगुणानामायतनं गृहमावास आश्रयआधारकरणं निमित्तमायतनं भण्यते तद्विपक्षाभूतमनायतनमिति। = सम्यक्त्वादि गुणोंका आयतन घर-आवास-आश्रय (आधार) करने का निमित्त, उसको `आयतन' कहते हैं और उससे विपरीत अनायतन है। २. बौद्धके द्वादश आयतन निर्देश बोधपाहुड़ / मूल या टीका गाथा संख्या ६/पृ.७५ पर उद्धृत “पंचेन्द्रियाणी शब्दाद्या विषयाः पञ्जमानसं। धर्मायतनमेतानि द्वादशायतनानि च। = बोद्ध मतमें आयतनका ऐसा लक्षण है - पाँच इन्द्रिय, शब्दादि पाँच विषय, मन व धर्म इस प्रकार १२ आयतन होते हैं। ३. षट् अनायतन निर्देश द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा संख्या ४१/१६९/२ अथानायतनषट्कं कथयति। मिथ्यादेवो, मिथ्यादेवाराधको, मिथ्यातपो, मिथ्यातपस्वी, मिथ्यागमो, मिथ्यागमधरा; पुरुषाश्चेत्युक्तलक्षणमनायतनषट्कं। = अब छह अनायतनोंका कथन करते हैं - मिथ्यादेव, मिथ्यादेवोंके सेवक, मिथ्यातप, मिथ्यातपस्वी, मिथ्याशास्त्र और मिथ्याशास्त्रोंके धारक, इस प्रकारके छह अनायतन सरागसम्यग्दृष्टियोंको त्याग करने चाहिए। चारित्तपाहुड़ / मूल या टीका गाथा संख्या ६/३४ पर उद्धृत “कुदेवगुरुशास्त्राणां तद्भक्तानां गृहे गतिः। षडनायतनमित्येवं वदन्ति विदितागमाः ।।१।। प्रभाचन्द्रस्त्वेवं वदति मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्राणि त्रीणि त्रयं च तद्वन्तः पुरुषाः षडनायतनानि। अथवा असर्वज्ञः १ असर्वज्ञायतनं, २ असर्वज्ञज्ञानं, ३ असर्वज्ञज्ञानसमवेतपुरुषः, ४ असर्वज्ञानुष्ठानं, ५ असर्वज्ञानुष्ठानसमवेतपुरुषश्चेति। = कुदेव, कुगुरु, व कुशास्त्रके तथा इन तीनोंके उपासकोंके घरोमें आना-जाना, इनको आगमकारोंने षडनायतन ऐसा नाम दिया है ।।१।। प्रभाचन्द्र आचार्य ऐसा कहते हैं कि - मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र ये तीन तथा इन तीनों के धारण अर्थात् मिथ्यादृष्टि, मिथ्याज्ञानी व मिथ्या आचारवान् पुरुष, यह छह अनायतन हैं। अथवा १ असर्वज्ञ, २ असर्वज्ञदेवका मन्दिर, ३ असर्वज्ञ ज्ञान, ४ असर्वज्ञ ज्ञानका धारक पुरुष, ५ असर्वज्ञज्ञानके अनुकूल आचार, ६ और उस आचारके धारक पुरुष यह छह अनायतन हैं।