अनंगलवण
From जैनकोष
राम और सीता का पुत्र । यह पुण्डरीक नगर के राजा वज्रजंघ के यहाँ श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन उत्पन्न हुआ था । मदनांकुश इसका भाई था । दोनों भाई युगल रूप में हुए थे । सिद्धार्थ ने इसे शस्त्र और शास्त्र विद्या सिखायी भी, इसका संक्षिप्त नाम लवण था । पद्मपुराण 100.17-69 दोनों भाइयों ने राजा पृथु से युद्ध किया था तथा उसे पराजित कर अन्यान्य देशों पर भी विजय प्राप्त की थी । पद्मपुराण 101.26-90, नारद से राम द्वारा सीता के त्यागने का वृत्तान्त जानकर इसने राम से भी युद्ध किया था तथा युद्ध में उन्हें रथ रहित किया था । पद्मपुराण 102.2-182 सिद्धार्थ से इन दोनों भाइयों का परिचय प्राप्त करके विलाप करते हुए राम और लक्ष्मण इनसे मिले थे । पद्मपुराण 103. 43-58, कांचनरथ की पुत्री मन्दाकिनी ने स्वयंवर में अनङ्गलवण का वरण किया था । पद्मपुराण 110. 1, 18, लक्ष्मण के मरण के सन्देश से दु:खी होकर संसार की स्थिति पर विचार करते हुए पुन: गर्भवास न करना पड़े इस ध्येय से यह अमृतस्वर नामक मुनिराज से दीक्षित हो गया था । पद्मपुराण 115.54-59 राम ने इनके पुत्र अनन्तलवण को ही राजपद सौंपा था । पद्मपुराण 119.1-2