अनित्यानुप्रेक्षा
From जैनकोष
बारह अनुप्रेक्षाओं में पहली अनुप्रेक्षा । सुख, आयु, बल, सम्पदा सभी अनित्य है, जीवन मेध के समान, देह वृक्ष की छाया सदृश और यौवन जल के बुलबुलों के समान क्षणभंगुर है । आत्मा के अतिरिक्त कोई वस्तु नित्य नहीं है । शरीर रोगों का घर है, इन्द्रिय सुख क्षणभंगुर हैं, प्रत्येक वस्तु नाशवान् हैं, चक्रवतियों की राजलक्ष्मी भी अस्थिर है, इस प्रकार सांसारिक पदार्थों की अनित्यता का चिन्तन करना अनित्यानुप्रेक्षा है । महापुराण 11. 105, पद्मपुराण 14.237-239, पांडवपुराण 25.75-80, वीरवर्द्धमान चरित्र 11. 5-13, देखें अनुप्रेक्षा