निर्वाणकल्याणक
From जैनकोष
तीर्थंकरों का निर्वाण-महोत्सव । चारों निकायों के देवेन्द्र अपने-अपने चिह्नों से तीर्थंकरों का निर्वाण ज्ञात करके अपने परिवार के साथ आते हैं और उनकी सोत्साह पूजा करते हैं । तीर्थंकरों की देह को निर्वाण का साधक मानकर उसे पालकी में विराजमान करते हैं और सुगन्धित द्रव्यों से पूजकर उसे नमस्कार करते हैं । इसके पश्चात् अग्निकुमार देवों के मुकुट से उत्पन्न हुई अग्नि से उसे भस्म कर देते हैं । देव उस भस्म को निर्वाण का साधक मानकर अपने मस्तक, नेत्र, बाहु, हृदय और फिर सर्वांग में लगाते हैं तथा उस पवित्र भूमितल को निर्वाणक्षेत्र घोषित करते हैं । वीरवर्द्धमान चरित्र 19.239-246