मध्यमवृत्ति
From जैनकोष
कुमार्ग की ओर जाने में रोक लगाकर इन्द्रियों को वश में रखने के लिए व्यवहृत मुनियों की आहारवृत्ति । इसमें न पौष्टिक आहार ग्रहण किया जाता है और न ऐसा आहार ग्रहण किया जाता है जिससे कि काय कृश हो जाय अपितु ऐसा आहार लिया जाता है जिससे इन्द्रियां वश में रह सके । महापुराण 20.5-6