माद्री
From जैनकोष
हरिवंशी राजा अन्धकवृष्टि और उसकी रानी सुभद्रा की पूरी । इसके वसुदेव आदि दस भाई तथा कुन्ती बहिन थी । इसका राजा पाण्डु के साथ पाणिग्रहण पूर्वक प्राजापात्य विवाह हुआ था । नकुल और सहदेव इसी के पुत्र थे । दूसरे पूर्वभव में यह भद्रिलपुर नगर के सेठ धनदत्त और सेठानी नन्दयशा की ज्येष्ठा नाम की पुत्री थी । प्रियदर्शना इसकी एक बड़ी बहिन तथा धनपाल आदि नौ भाई थे । यह और इसके सभी भाई-बहिन तथा माता-पिता दीक्षित हुए । इसकी माँ ने परजन्म में भी इस जन्म की भाँति पुत्र-पुत्रियों से सम्बन्ध बना रहने का निदान किया था । अन्त में यह और इसके भाई-बहिन और मां सभी आनत स्वर्ग में उत्पन्न हुए । वे सब यहाँ से चयकर इस पर्याय में आये । इनमें ज्येष्ठा का जीव इस नाम से उत्पन्न हुआ । इसका दूसरा नाम मद्री था । महापुराण 70.94-97, 114-116, 182-198, हरिवंशपुराण 18.12-15, 123-124, 45.38