रविप्रभ
From जैनकोष
(1) प्रथम स्वर्ग का विमान । महापुराण 47.260
(2) प्रथम स्वर्ग के रविप्रभ विमान का एक देय । इसने सुलोचना के शील को परीक्षा के लिए देवी कांचना को जयकुमार के पास भेजा था । देवी ने जयकुमार से अनेक चेष्टाएँ कीं किन्तु वह सफल न हो सकी । अन्त में कुपित होकर जब वह जयकुमार को ही उठाकर ले जाने लगी तब सुलोचना ने उसे ललकारा था । वह सुलोचना के शील के आगे कुछ न कर सकी और स्वर्ग लौट गयी । इस देवी ने इस देव को वह सब वृत्तान्त सुनाया । यह देव जयकुमार के निकट गया तथा क्षमायाचना कर इसने जयकुमार की रत्नों से पूजा की थी । महापुराण 47.259-273, पांडवपुराण 3.261-272
(3) वानरवंशी राजा समीरणगति का पुत्र । यह अमरप्रभ का पिता था । पद्मपुराण 6.161-162
(4) जम्बूद्वीप का एक नगर । लक्ष्मण ने इस पर विजय की थी । पद्मपुराण 94.4-9