लोहिताक्षमय
From जैनकोष
सुमेरु पर्वत की छ: परिधियों में प्रथम परिधि । इसे पृथिवीकाय रूप कहा है । इसका विस्तार सोलह हजार पांच सौ योजन है । हरिवंशपुराण 5.305-306
सुमेरु पर्वत की छ: परिधियों में प्रथम परिधि । इसे पृथिवीकाय रूप कहा है । इसका विस्तार सोलह हजार पांच सौ योजन है । हरिवंशपुराण 5.305-306