उपेक्षा
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 1/10/97/10 रागद्वेषयोरप्रणिधानमुपेक्षा।
= रागद्वेष रूप परिणामोंका नहीं होना उपेक्षा है।
( भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 1696/1516/16)
त.अनु/मू. 139 माध्यस्थ्यं समतोपेक्षावैराग्यं साम्यमस्पृहा। वैतृष्ण्यं प्रशमः शान्तिरित्येकार्थोऽभिधीयते ।139।
= माध्यस्थ्य, समता, उपेक्षा, वैराग्य, साम्य, अस्पृहा, वैतृष्ण्य प्रशम और शान्ति ये सब एक हो अर्थको लिए हुए हैं। (और भी देखें सामायिक - 1.1)
• अन्तरंग अशुद्धताके सद्भावमें भी उसकी अपेक्षा कैसे करें - देखें अनुभव - 6।