एकादश रुद्र निर्देश
From जैनकोष
एकादश रुद्र निर्देश
1. नाम व शरीरादि परिचय
क्रम |
1. नाम निर्देश |
2. तीर्थ |
3. उत्सेध |
4. आयु |
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1. ति.प./4/1439-1441, 520-521 2. त्रि.सा./836 3. ह.पु./60/534-536 |
1. ति.प./4/1444-1445 2. त्रि.सा./838 3. ह.पु./60/535-538 |
1. ति.प./4/1446-1447 2. त्रि.सा./839 3. ह.पु./60/539-545 |
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त्रि.सा. |
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1 |
भीमावलि |
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देखें तीर्थंकर |
500 धनुष |
83 लाख पूर्व |
2 |
जितशत्रु |
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450 धनुष |
71 लाख पूर्व |
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3 |
रुद्र |
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100 धनुष |
2 लाख पूर्व |
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4 |
वैश्वानर |
विशालनयन |
90 धनुष |
1 लाख पूर्व |
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5 |
सुप्रतिष्ठ |
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80 धनुष |
84 लाख वर्ष |
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6 |
अचल |
बल |
70 धनुष |
60 लाख वर्ष |
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7 |
पुण्डरीक |
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60 धनुष |
50 लाख वर्ष |
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8 |
अजितंधर |
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50 धनुष |
40 लाख वर्ष |
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9 |
अजीतनाभि |
जितनाभि |
28 धनुष |
20 लाख वर्ष |
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10 |
पीठ |
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24 धनुष |
10 लाख वर्ष (2-1 लाख वर्ष) |
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11 |
सात्यकि पुत्र |
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7 हाथ |
69 वर्ष |
2. कुमार काल आदि परिचय
क्रम |
5. कुमार काल |
6. संयमकाल |
7. तप भंगकाल |
8. निर्गमन |
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1. ति.प./4/1446-1467 2. ह.पु./60/539-545 |
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1. ति.प./4/1468 2. त्रि.सा./840 3. ह.पु./60/546-547 |
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1 |
2766666 पूर्व |
2766668 पूर्व |
2766666 पूर्व |
सप्तम नरक |
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2 |
2366666 पूर्व |
2366668 पूर्व |
2366666 पूर्व |
सप्तम नरक |
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3 |
66666 पूर्व |
66668 पूर्व |
66666 पूर्व |
षष्ठ नरक |
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4 |
33333 पूर्व |
33334 पूर्व |
33333 पूर्व |
षष्ठ नरक |
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5 |
28 लाख वर्ष |
28 लाख वर्ष |
28 लाख वर्ष |
षष्ठ नरक |
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6 |
20 लाख वर्ष |
20 लाख वर्ष |
20 लाख वर्ष |
षष्ठ नरक |
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7 |
1666666 वर्ष (ह.पु.1666668 वर्ष) |
1666668 वर्ष (ह.पु.166666 वर्ष) |
1666666 वर्ष |
षष्ठ नरक |
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8 |
1333333 वर्ष |
1333334 वर्ष |
1333333 वर्ष |
पंचम नरक |
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9 |
666666 वर्ष (ह.पु.666668 वर्ष) |
666668 वर्ष (ह.पु.666666 वर्ष) |
666666 वर्ष |
चतुर्थ नरक |
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10 |
333333 वर्ष |
333334 वर्ष |
333333 वर्ष |
चतुर्थ नरक |
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11 |
7 वर्ष |
34 वर्ष (ह.पु.28 वर्ष) |
28 वर्ष (ह.पु./34 वर्ष) |
तृतीय नरक |
3. रुद्रों सम्बन्धी कुछ नियम
ति.प./4/1440, 1442 पीढो सच्चइपुत्तो अंगधरा तित्थकत्ति-समएसु।...।1440। सव्वे दसमे पुव्वे रुद्दा भट्टा तवाउ विसयत्थं। सम्मत्तरयणरहिदा बुड्डा घोरेसु णिरएसुं।1442। = ये ग्यारह रुद्र अंगधर होते हुए तीर्थकर्ताओं के समयों में हुए हैं।1440। सब रुद्र दश में पूर्व का अध्ययन करते समय विषयों के निमित्त तप से भ्रष्ट होकर सम्यक्त्व रूपी रत्न से रहित होते हुए घोर नरक में डूब गए।1442।
ह.पु./60/547...। भूर्यसंयमभाराणां रुद्राणां जन्मभूमय:। = उन रुद्रों के जीवन में असंयम का भार अधिक होता है, इसलिए नरकगामी होना पड़ता है।
त्रि.सा./841 विज्जाणुवादपढणे दिट्ठफला णट्ठ संजमा भव्वा। कदिचि भवे सिज्झंति हु गहिदुज्झिय सम्ममहियादो।841। = ते रुद्र विद्यानुवाद नामा पूर्व का पठन होतै इह लोक सम्बन्धी फल के भोक्ता भए। बहुरि नष्ट भया है, अङ्गीकार किया हुआ संजम जिनका ऐसै है। बहुरि भव्य है, ते ग्रहण करके छोड़ा जो सम्यक्त्व ताके माहात्म्य से केतेइक पर्याय भये सिद्ध पद पावेंगे।