टंकोत्कीर्ण
From जैनकोष
(प्र.सा./त.प्र./51) क्षायिकं हि ज्ञानं...तट्टङ्कोत्कीर्णन्यायावस्थित समस्तवस्तुज्ञेयाकारतयाधिरोपितनित्यत्वम् । =वास्तव में क्षायिक (केवल) ज्ञान अपने में समस्त वस्तुओं के ज्ञेयाकार टंकोत्कीर्ण न्याय से स्थित होने से जिसने नित्यत्व प्राप्त किया है।