पाण्डुक
From जैनकोष
(1) सदैव पुष्पित वृक्षों से युक्त मेरु पर्वत का एक वन । तीर्थंकरों के जन्माभिषेक के लिए पाण्डुकशिला इसी वन में बनी हुई है । यहाँ जिन प्रतिमाओं की वन्दना के लिए देव आते हैं । महापुराण 5.183, पद्मपुराण 12.84-85, हरिवंशपुराण 8.38,44, 190, पांडवपुराण 2. 123 देखें पाण्डुकवन
(2) पाण्डुक वन का एक भाग । हरिवंशपुराण 5.308-309
(3) विजया पर्वत की उत्तरश्रेणी का बाईसवाँ नगर । हरिवंशपुराण 22. 88
(4) चक्रवर्ती की नौ निधियों में धान्य तथा रसों की उत्पादिनी निधि । यह भरतेश को प्राप्त थी । महापुराण 37.73, 78, हरिवंशपुराण 11. 116
(5) राजगृह की पाँच पहाड़ियों में एक पहाड़ी । यह आकार में गोल है तथा पूर्व और उत्तर दिशा के अन्तराल में सुशोभित है । हरिवंशपुराण 3.55
(6) पाण्डुक स्तम्भ के पास बैठने वाले विद्याधर । हरिवंशपुराण 26.17
(7) कुण्डलगिरि के महेन्द्रकूट का निवासी एक देव । हरिवंशपुराण 5.694