अशून्य नय
From जैनकोष
यह नय, प्रवचनसार की तत्त्व प्रदीपिका टीका के परिशिष्ट में 47 नयों में से एक नय है।
प्रवचनसार/तत्व प्रदीपिका/परिशिष्ट/नय नं. शून्यनयेन शून्यागारवत्केवलोद्भासि।२२। अशून्यनयेन लोकाक्रान्तनौवन्मिलितोद्भासि।२३। = अशून्यनय से लोगों से भरे हुए जहाज की भांति (पदार्थ) मिलित भासित होता है। इससे विपरीत शून्यनय से शून्यघर की भांति (पदार्थ) एकाकी भासित होता है।
देखें नय - I. 5 ।