कलह
From जैनकोष
( धवला 12/4,2,8,10/285/4 )—क्रोधादिवशादसिदण्डासभ्यवचनादिभि: परसंतापजननं कलह:। =क्रोधादि के वश होकर तलवार, लाठी और असभ्य वचनादि के द्वारा दूसरों को सन्ताप उत्पन्न करना कलह कहलाता है।
( धवला 12/4,2,8,10/285/4 )—क्रोधादिवशादसिदण्डासभ्यवचनादिभि: परसंतापजननं कलह:। =क्रोधादि के वश होकर तलवार, लाठी और असभ्य वचनादि के द्वारा दूसरों को सन्ताप उत्पन्न करना कलह कहलाता है।