काकतालीय न्याय
From जैनकोष
द्रव्यसंग्रह टीका/35/144/1 परं परं दुर्लभेषु कथंचित्काकतालीयन्यायेन लब्धेष्वपि ....परमसमाधिर्दुर्लभ:।=एकेन्द्रियादि से लेकर अधिक अधिक दुर्लभ बातों को काकतालीय न्याय से अर्थात् बिना पुरूषार्थ के स्वत: ही प्राप्त कर भी ले तौ भी परम समाधि अत्यन्त दुर्लभ है। मोक्षमार्ग प्रकाशक/3/80/15 बहुरि काकतालीय न्यायकरि भवितव्य ऐसा ही होय और तातै कार्य की सिद्धि भी हो जाय।