कंदर्प
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि/7/32/369/14 रागोद्रेकात्प्रहासमिश्रोऽशिष्टवाक्प्रयोग: कन्दर्प:। = रागभाव की तीव्रतावश हास्य मिश्रित असभ्य वचन बोलना कन्दर्प है। ( राजवार्तिक/7/32/1/556 ), ( भगवती आराधना / विजयोदया टीका/180/398/1 )।
सर्वार्थसिद्धि/7/32/369/14 रागोद्रेकात्प्रहासमिश्रोऽशिष्टवाक्प्रयोग: कन्दर्प:। = रागभाव की तीव्रतावश हास्य मिश्रित असभ्य वचन बोलना कन्दर्प है। ( राजवार्तिक/7/32/1/556 ), ( भगवती आराधना / विजयोदया टीका/180/398/1 )।