चूर्ण
From जैनकोष
- द्रव्य निक्षेप का एक भेद–देखें निक्षेप - 5.9। तद्वयतिरिक्त नो आगम के अनेक भेद हैं, उनमें से एक भेद चूर्ण है। —
- आहार का एक दोष–देखें आहार - II.4; मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 421-477
- वस्तिका का एक दोष–देखें वस्तिका । भगवती आराधना / विजयोदया टीका 230/444/6 उत्पादनदोषा.......विद्यया, मंत्रेण, चूर्ण प्रयोगेण वा गृहिणं वशे स्थापयित्वा लब्धा । मूलकर्मणा वा भिन्नकन्यायोनिसंस्थापना मूलकर्म । विरक्तानां अनुरागजननं वा । उत्पादनाख्योऽभिहितो दोषः षोडशप्रकारः । ...... विद्या, मंत्र अथवा चूर्ण प्रयोग से गृहस्थ को अपने वशकर वसतिका की प्राप्ति कर लेना विद्यादि दोष हैं ।
धवला 9/4,1,65/272/13 .......चित्तारयाणमण्णेसिं च वण्णुप्पायणकुसलाणं किरियाणिप्पण्णदव्वं णर-तुरयादिबहुसंठाणंवण्णंणामपिट्ठपिट्ठियाकणिकादिदव्वं चुण्णणकिरियाणिप्फण्णं चुण्णं णाम। ......।= ......चूर्णन क्रिया से सिद्ध हुए पिष्ट, पिष्टिका और कणिका आदि द्रव्य को चूर्ण कहते हैं।
....... पुव्वीपच्छा संथुदि विज्जमंते य चुण्णजोगे य। उप्पादणा य दोसो सोलसमो मूलकम्मे य ॥446॥ ....... ॥62॥
........- धात्री दोष, दूत, निमित्त, आजीव, वनीपक, चिकित्सक, क्रोधी, मानी, मायावी, लोभी, ये दस दोष। तथा पूर्व संस्तुति, पश्चात् संस्तुति, विद्या, मंत्र, चूर्णयोग, मूल कर्म छह दोष ये हैं।
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 447-461सोलह उत्पादन दोष-....... णेत्तस्संजणचुण्णं भूसणचुण्णं च गत्त सोभयरं। चुण्णं तेणुप्पदो चुण्णयदोसो हवदि एसो ॥460॥ अवसाणं वसियसणं संजोजयणं च विप्पजुत्ताणं। भणिदं तु मूलकम्मं एदे उप्पादणा दोसा ॥461॥
...... चूर्ण दोष - नेत्रों का अंजन, भूषण साफ करनेका चूर्ण, शरीर की शोभा बढानेवाला चूर्ण - इन चूर्णों की विधि बतलाकर आहार ले वहाँ चूर्ण दोष होता है.... ॥460॥