तीर्थंकर
From जैनकोष
धर्म के प्रवर्तक । भरत और ऐरावत क्षेत्र में इनकी संख्या चौबीस-चौबीस होती है और विदेह क्षेत्र में बीस । महापुराण 2.117 अवसर्पिणी काल में हुए चौबीस तीर्थंकर ये हैं― वृषभ, अजित, शंभव, अभिनंदन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्व, चंद्रप्रभ, पुष्पदंत, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनंत, धर्म शांति, कुंथु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि पार्श्व और महावीर (सन्मति और वर्धमान) । महापुराण 2.127-133 हरिवंशपुराण 2.18, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101-108 इनके गर्भावतरण, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण ये पाँच कल्याणक होते हैं । इन कल्याणकों को देव और मानव अत्यंत श्रद्धा के साथ मनाते हैं । गर्भावतरण से पूर्व के छ: मासों से ही इनके माता-पिता के भवनों पर रत्नों और स्वर्ण की वर्षा होने लगती है । ये जन्म से ही मति, श्रुत और अवधिज्ञान के धारक होते हैं तथा आठ वर्ष की अवस्था में देशव्रती हो जाते हैं । महापुराण 12. 96-97, 163, 14. 165, 53.35, हरिवंशपुराण 43.78 उत्सर्पिणी के दुषमा-सुषमा काल में भी जो चौबीस तीर्थंकर होंगे वे हैं― महापद्म, सुरदेव, सुपार्श्व, स्वयंप्रभ, सर्वात्मभूत, देवपुत्र, कुलपुत, उदंक, प्रोष्ठिल, जयकीर्ति, मुनिसुव्रत, अरनाथ, अपाय, निष्कषाय, विपुल, निर्मल, चित्रगुप्त, समाधिगुप्त, स्वयंभू, अनिवर्ती, विजय, विमल, देवपाल और अनंतवीर्य । इनमें प्रथम तीर्थंकर सोलहवें कुलकर होंगे । सौ वर्ष उनकी आयु होगी और सात हाथ ऊँचा शरीर होगा । अंतिम तीर्थंकर की आयु एक करोड़ वर्ष पूर्व होगी और शारीरिक अवगाहना पांच सौ धनुष ऊँची होगी । महापुराण 76.477-481, हरिवंशपुराण 66.558-562