अंबर
From जैनकोष
परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार संख्या २/१६३/२७५ अम्बरशब्देन शुद्धाकाशं न ग्राह्यं किन्तु विषयकषायविकल्पशून्यपरमसमाधिर्ग्राह्यः।
= अम्बर शब्द आकाश का वाचक नहीं समझना, किन्तु समस्त विषय कषायरूप विकल्प जालों से शून्य परम समाधि लेना।