सद्वेद्यास्रव
From जैनकोष
सातावेदनीय कर्म के आस्रव । यह समस्त प्राणियों पर दया करना, व्रती जनों पर अनुराग रखना, सरागसंयम का पालन करना, दान, क्षमा, शौच, अर्हंत की पूजा और बाल तथा वृद्ध तपस्वियों की वैयावृत्ति आदि से होता है । हरिवंशपुराण 58.95
सातावेदनीय कर्म के आस्रव । यह समस्त प्राणियों पर दया करना, व्रती जनों पर अनुराग रखना, सरागसंयम का पालन करना, दान, क्षमा, शौच, अर्हंत की पूजा और बाल तथा वृद्ध तपस्वियों की वैयावृत्ति आदि से होता है । हरिवंशपुराण 58.95