सामान्य गुण
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि/5/38/30 पर उद्धृत गुण इदि दव्वविहाणं।= द्रव्य में भेद करने वाले धर्म को गुण कहते हैं।
आलापपद्धति/6 गुण्यते पृथक्क्रियते द्रव्यं द्रव्यांतराद्यैस्ते गुणा:। =जो द्रव्य को द्रव्यांतर से पृथक् करता है सो गुण है।
न्यायदीपिका/3/78/121 यावद्द्रव्यभाविन: सकलपर्यायानुवर्त्तिनो गुणा: वस्तुत्वरूपरसगंधस्पर्शादय:।=जो संपूर्ण द्रव्य में व्याप्त कर रहते हैं और समस्त पर्यायों के साथ रहने वाले हैं उन्हें गुण कहते हैं। और वे वस्तुत्व, रूप, रस, गंध और स्पर्शादि हैं।
पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/48 शक्तिर्लक्ष्मविशेषो धर्मो रूपं गुण: स्वभावश्च। प्रकृतिशीलं चाकृतिरेकार्थवाचका अमी शब्दा:।48।
पंचाध्यायी / उत्तरार्ध/478 लक्षणं च गुणश्चांगं शब्दांचैकार्थवाचका:।478।=1. शक्ति, लक्षण, विशेष, धर्म, रूप, गुण, स्वभाव, प्रकृति, शील और आकृति ये सब शब्द एक ही अर्थ के वाचक हैं।48। 2. लक्षण, गुण और अंग ये सब एकार्थवाचक शब्द हैं।
सामान्य गुण को विस्तार से समझने के लिये देखें गुण - 1।