अहेतु समा
From जैनकोष
स्या.सू./मू.व.भा.501/18 त्रैकाल्यासिद्धेर्हेतोरहेतुसमः ॥18॥ हेतुः साधनं तत्साध्यात् पश्चात्सह वा भवेत्। यदि पूर्व साधनमस्ति असति साध्ये कस्य साधनम्। अथ पश्चात्, असति साधने कस्येदं साध्यम्। अथ युगपत्साध्यसाधने। द्वयोर्विद्यमानयोः किं कस्य साधनं किं कस्य साध्यमिति हेतुरहेतुना न विशिष्यते। अहेतुना साधर्म्यात् प्रत्यवस्थानमहेतुसमः।
= तीनों काल में वृत्तिता के असिद्ध हो जाने से अहेतुसमा जाति होती है। अर्थात् साध्य स्वरूप अर्थ के साधन करने में हेतु का तीनों कालो में वर्तना नहीं बनने से प्रत्यवस्थान देने पर अहेतुसमा जाति होती है। जैसे-हेतु क्या साध्य से पूर्व काल में वर्तता है, अथवा क्या साध्य से पश्चात् उत्तरकाल में वर्तता है अथवा क्या दोनों साथ-साथ वर्तते हैं? प्रथम पक्ष के अनुसार साधनपना नहीं बनता क्योंकि साध्य अर्थ के बिना यह किसका साधन करेगा। द्वितीय पक्ष में साध्यपना नहीं बनता, क्योंकि साधन अभाव में वह किसका साध्य कहलायेगा। तृतीय पक्ष में किसी एक विवक्षित में ही साधन या साध्यपना युक्त नहीं होता, क्योंकि, ऐसी अवस्था में किसको किसका साधन कहें और किसको किसका साध्य।
( श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.395/514/16)