अनुकृति
From जैनकोष
धवला पुस्तक संख्या ११/४, २, ६, २४६/३४१/१२ अणुकट्ठी णाम ट्ठिदिं ज्झवसाणट्ठणाण समाणत्तमसमाणत्तं च परूवेदि।
= अणुकृति अनुयोगद्वार प्रत्येक स्थिति के स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानों की समानता व असमानता को बतलाता है।
धवला पुस्तक संख्या ११/४, २, ६, २४६/३४१/१२ अणुकट्ठी णाम ट्ठिदिं ज्झवसाणट्ठणाण समाणत्तमसमाणत्तं च परूवेदि।
= अणुकृति अनुयोगद्वार प्रत्येक स्थिति के स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानों की समानता व असमानता को बतलाता है।