अनेकत्व
From जैनकोष
न. च. वृ. /६२/६५ अणेक्करूवा हु विविहभावत्था ।।६२।। ....अणेक्कं....पज्जपदो ।।६५।।
= अनेक रूप अर्थात् विविध भावों या पर्यायोंमें स्थित ।।६२।। द्रव्य पर्यायकी अपेक्षा अनेक है ।।६५।।
आलापपद्धति अधिकार संख्या ६ गुणपर्यायाधिकार "एकस्याप्यनेकस्वभावोपलम्भादनेकस्वभावः।
= एक द्रव्यके अनेक स्वभावकी उपलब्धि होनेके कारण वह अनेक स्वभाववाला है।
स. सा./आ./परि./शक्ति नं. ३२ एकद्रव्यव्याप्यानेकपर्यायमयत्वरूपा अनेकत्वशक्तिः। एक द्रव्यसे व्याप्य (व्यापने योग्य) अनेक पर्यायमयपनारूप अनेकत्व शक्ति है।