चंद्रगुप्त १
From जैनकोष
मालवा के राजा थे जिन्होंने मन्त्री शाकटाल तथा चाणक्य की सहायता से वी.नि.215 में नन्दवंश का नाश करके मौर्यवंश की स्थापना की थी। (भद्रबाहु चारित्र/3/8)। (देखें इतिहास - 3.4)। ई.पू. 305 (वि.नि.222) में पञ्जाब प्रान्त में स्थित सिकन्दर के सूबेदार सिलोकस को परास्त करके उसकी कन्या से विवाह किया था। तिलोयपण्णत्ति/4/1481 के अनुसार ये अन्तिम मुकुटधारी राजा थे जिन्होंने जिनदीक्षा धारण की थी। हरिषेण कृत कथा कोष में कथा नं.131 के अनुसार आप पंचम श्रुतकेवली भद्रबाहु प्र.के शिष्य विशाखाचार्य थे। (कोश 1 परिशिष्ट/2/3) तिल्लोय पण्णति में तथा नन्दि संघ की पट्टावली में कथित श्रुतधरों की परम्परा से इस मत की पुष्टि होती है। (देखें इतिहास - 4.4)। श्रवण बेलगोल से प्राप्त शिलालेख नं.64 में भी इन्हें भद्रबाहु प्र.का शिष्य बताया गया है (ष.ख.2/प्र.4/H.L.jain)। सम्भवत: जैन होने के कारण इनको हिन्दू पुराणों ने मुरा नामक दासी का पुत्र कह दिया है, और मुद्रा राक्षस नाटक में चाणक्य के मुख से इन्हें वृषल कहलाया गया है। परन्तु वास्तव में ये ब्राह्मण थे। (जै./पी./352)। इनसे पूर्ववर्ती नन्द वंश के राजाओं को भी शुद्रा का अथवा नाई का पुत्र कहा गया है। देखें आगे नन्दवंश । समय–जैनागम के अनुसार वी.नि.215-255 (ई.पू.312-272); जैन इतिहास के अनुसार ई.पू.326-302, भारतीय इतिहास के अनुसार ई.पू.322-298। (देखें इतिहास - 3.4)।