इंद्रक
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
धवला पुस्तक 14/5,6,641/495/6 उडु आदोणि विमाणाणिंदियाणि णाम।
= उडु आदिक विमान इंद्रक कहलाते हैं।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 35/115 इंद्रका अंतभूमयः।
= इंद्रका अर्थ अंतर्भूमि है।
तिलोयपण्णत्ति अधिकार 2/36 का विशेषार्थ “जो अपने पटलके सब बिलोंके बीचमें हो वह इंद्रक बिल कहलाता है।
( धवला पुस्तक 14/5/6/495/8)।
ति.सा.476 भाषा “अपने-अपने पटलके बीचमें जो एक एक विमान पाईए तिनका नाम इंद्रक विमान है।
• स्वर्गके इंद्रक विमानोंका प्रमाणादि - देखें स्वर्ग - 5.3,5।
• नरकके इंद्रक बिलोंका प्रमाणादि - देखें नरक - 5.3।
पुराणकोष से
(1) रत्नप्रभा आदि पृथिवियों के पटलों के मध्य मे स्थित बिल । इन बिलों की चारों दिशाओं और विदिशाओं में श्रेणीबद्ध बिल होते हैं । आगे ये बिल त्रिकोण तथा तीन द्वारों से युक्त होते हैं । इन्हें इंद्रक निगोद भी कहा गया है । हरिवंशपुराण 4.86, 103, 352
(2) अच्युतेंद्र के 159 विमानों मे एक विमान । महापुराण 10.186-187