कालानुयोग
From जैनकोष
- जीवों के अवस्थान काल विषयक सामान्य व विशेष आदेश प्ररूपणा
प्रमाण—1.(ष.ख.4/1,5,33-342/357-488); 2. (ष.ख./2,8,1-55/पु.7/पृ.462-477); 3. (ष.ख./2,2,1-216/114-185)
संकेत—देखें काल - 6.1 काल विशेषों को निकालने का स्पष्ट प्रदर्शन—देखें काल - 5- गति मार्गणा
- इंद्रिय मार्गणा
- काय मार्गणा
- योग मार्गणा
- वेद मार्गणा
- कषाय मार्गणा
- ज्ञान मार्गणा
- संयम मार्गणा
- दर्शन मार्गणा
- लेश्या मार्गणा
- भव्यत्व मार्गणा
- सम्यक्त्व मार्गणा
- संज्ञी मार्गणा
- आहारक मार्गणा
1. गति मार्गणा
मार्गणा |
गुणस्थान |
नाना जीवापेक्षया |
एक जीवापेक्षया |
|||||||||||
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
|||||
नं.1 |
नं.2 |
नं.1 |
नं.3 |
|||||||||||
|
|
सू. |
सू. |
|
|
|
|
सू. |
सू. |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
नरक गति— |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
नरकगति सामान्य |
... |
|
2 |
सर्वदा |
प्रवेशांतर काल से अवस्थान काल अधिक है |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
2-3 |
10000 वर्ष |
|
33 सागर |
|
|
1ली पृथिवी |
... |
|
2 |
सर्वदा |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
5-6 |
10000 वर्ष |
|
1 सागर |
|
|
2-7 पृथिवी |
... |
|
2 |
सर्वदा |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
8-9 |
1-22 सागर |
क्रमश: 1,3,7,10,22 सागर |
3-33 सागर |
क्रमश: 3,7,10,1722,33 सागर |
|
नरक सामान्य |
1 |
33 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
34-35 |
|
अंतर्मू. |
28/ज 3 या 4थे से गिरकरपुन: चढ़े |
33 सागर |
7वें नरक की पूर्ण आयु मिथ्यात्व सहित बीते |
|
नरक सामान्य |
2-3 |
36 |
|
|
मूलोघवत् |
|
मूलोघवत् |
36 |
|
|
मूलोघवत् |
|
मूलोघवत् |
|
नरक सामान्य |
4 |
37 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
38-39 |
|
अंतर्मू. |
28/ज 1ले 3रे से 4थे में जा पुन: गिरे |
33सागर-6 अंतर्मुहूर्त |
7वें नरक में उत्पन्न 28/ज.मिथ्यादृ पर्याप्तिपूर्ण कर वेदकसम्यक्त्वी हो अंतर्मुहूर्त आयु शेष रहने पर पुन: मिथ्यात्वी हुआ |
|
1-7 पृथिवी |
1 |
40 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
41-42 |
|
अंतर्मू. |
नरक सामान्यवत् |
क्रमश: 1,3,7,10,17,22,33 सागर |
नरक सामान्यवत् |
|
1-7 पृथिवी |
2-3 |
43 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
43 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
|
1-7 पृथिवी |
4 |
44 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
45-46 |
|
अंतर्मु. |
नरक सामान्यवत् |
क्रमश: 1,3,7,10,17सा.22सा.3अ.33सा.-6अंतर्मु. |
पूर्ण स्थिति से पर्याप्तिकाल व अंतिम अंतर्मुहूर्त हीन। |
|
2. तिर्यंच गति |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
तिर्यंच सामान्य |
... |
|
4-5 |
सर्वदा |
प्रवेशांतर काल से अवस्थानकाल अधिक है |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
11-12 |
1 क्षुद्रभव |
मनुष्यसे आकर कर्मभूमि में उपजे तो |
असं. पु. परि. |
अन्य गतियों से आकर कर्मभूमिज तिर्यंचों में परिभ्रमण |
|
पंचेंद्रिय सामा. |
... |
|
4-5 |
सर्वदा |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
14-15 |
1 क्षुद्रभव |
अपर्याप्तक की अपेक्षा |
3पल्य+95को.पू. |
परिभ्र.के पश्चा.उत्तमभोगभू.में देव हुआ |
|
पंचेंद्रिय पर्याप्त. |
... |
|
4-5 |
|
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
14-15 |
अंतर्मु. |
पर्याप्तक की अपेक्षा |
3पल्य+47को.पू. |
परिभ्र.के पश्चा.उत्तमभोगभू.में देव हुआ |
|
पंचेंद्रिय योनिगति |
... |
|
4-5 |
सर्वदा |
काल से अवस्थानकाल अधिक है |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
14-15 |
अंतर्मु. |
पर्याप्तक की अपेक्षा |
3पल्य+15को.पू. |
परिभ्र.के पश्चा.उत्तमभोगभू.में देव हुआ |
|
पंचेंद्रिय नपुंसक वेदी |
... |
|
4-5 |
सर्वदा |
... |
... |
... |
|
14-15 |
... |
... |
8 कोड़ पूर्व |
परिभ्रमण (कर्मभूमि में) |
|
पंचेंद्रिय लब्ध्यपर्याप्त |
... |
|
4-5 |
सर्वदा |
तिर्यं.सा.वत् |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
17-18 |
क्षुद्रभव |
अविवक्षि.तिर्यं.पर्या.से आना |
अंतर्मुहूर्त |
अविवक्षि.तिर्यं.से आकर पंचे.होना |
|
तिर्यंच सामान्य |
1 |
47 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
48-49 |
|
अंतर्मु. |
28/ज.3,4,5वें से 1ला हो पुन: ऊपर चढ़े |
असं. पुद्गलपरिव. |
अनादि मिथ्यादृष्टि तिर्यंचों में उपज वहाँ इतने काल पर्यंत परिभ्रमण कर अन्य गति को प्राप्त हुआ |
|
मार्गणा |
गुणस्थान |
नाना जीवापेक्षया |
एक जीवापेक्षया |
|||||||||||
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
|||||
नं.1 |
नं.2 |
नं.1 |
नं.3 |
|||||||||||
|
|
सू. |
सू. |
|
|
|
|
सू. |
सू. |
|
|
|
|
|
|
2-3 |
50 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
50 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
|
|
4 |
51 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
52-53 |
|
अंतर्मु. |
1,3,5में से 4थे में आ पुन: लौटे |
3 पल्य |
बद्धायुष्कक्षा. सम्य.भोगभूमि.तिर्यंच हुआ |
|
|
5 |
54 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
55-56 |
|
अंतर्मुहूर्त |
उपरोक्तवत् पर 28/ज.की अपेक्षा |
1को.पू.-3अंतर्मुहूर्त |
28/ज.सम्मूर्च्छिम पर्याप्त मच्छमेंढक आदि कहो 3अंत में पर्याप्तिपूर्ण कर संयातासंय हो भव के अंत तक रहा |
|
पंचेंद्रिय सामान्य |
1 |
57 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
58-59 |
|
अंतर्मु. |
तिर्यंच सामान्यवत् |
3पल्य+95को.पू.+अंतर्मुहूर्त |
संज्ञी, असंज्ञी व तीनों वेद इन स्थानों में से प्रत्येक में 8को.पू.=48को.पू.; ल.अप.में अंतर्मु., पुन: उपरोक्तवत् 3वेदों में 47को.पू.,फिर भोगभूमि में उपजा |
|
|
2-3 |
60 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
60 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
|
|
4 |
61 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
62-63 |
|
अंतर्मु. |
तिर्यंच सामान्यवत् |
3 पल्य |
तिर्यंच सामान्यवत् |
|
|
5 |
64 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
64 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
|
पंचेंद्रिय पर्याप्त |
1 |
57 |
|
|
पंचेंद्रिय सामान्यवत् |
|
|
58-59 |
|
|
पंचेंद्रिय सामान्यवत् |
3पल्य+47को.पू. |
सविशेष पंचेंद्रिय सामान्यवत् |
|
|
2-3 |
60 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
60 |
|
|
मूलोघवत् |
|
सविशेष पंचेंद्रिय सामान्यवत् |
|
|
4-5 |
61-64 |
|
|
पंचेंद्रिय सामान्यवत् |
|
61-64 |
|
|
पंचेंद्रिय सामान्यवत् |
|
|
|
|
|
|
57 |
|
|
पंचेंद्रिय सामान्यवत् |
|
58-59 |
|
|
|
3पल्य+15को.पू. |
सविशेष पंचेंद्रिय सामान्यवत् |
|
|
पंचेंद्रिय योनिमति |
2-3 |
60 |
|
|
पंचेंद्रिय सामान्यवत् |
|
60 |
|
|
पंचेंद्रिय सामान्यवत् |
|
|
|
|
|
4 |
61 |
|
|
पंचेंद्रिय सामान्यवत् |
|
62-63 |
|
|
पंचेंद्रिय सामान्यवत् |
3पल्य–2मास व मुहूर्त पृथक्त्व |
28/ज.मिथ्यात्वी भोगभूमिज तिर्यं.में उपजा/2मास गर्भ में बीते/जन्म के मुहू.पृथक्त्व पश्चात् वेद.सम्य. |
|
|
|
5 |
64 |
|
|
पंचेंद्रिय सामान्यवत् |
|
64 |
|
|
पंचेंद्रिय सामान्यवत् |
|
|
|
|
पंचे.ल.अप. |
1 |
65 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
66-67 |
|
क्षुद्रभव |
अविवक्षित.पर्या.से आ पुन: लौटे |
अंतर्मुहूर्त |
जघन्यवत् |
|
3. मनुष्यगति |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
मनुष्य सामान्य |
... |
|
4-5 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
20-21 |
क्षुद्रभव |
अपर्याप्त की अपेक्षा |
3पल्य+40को.पू. |
कर्मभूमिज में भ्रमणकाल 40को.पू./फिर भोगभूमिज |
|
" पर्याप्त |
... |
|
4-5 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
20-21 |
अंतर्मु. |
पर्याप्त होकर इतने काल से पहले न मरे |
3पल्य+23को.पू. |
कर्मभूमिज में भ्रमणकाल 23को.पू./फिर भोगभूमिज |
|
मनुष्यणी प. |
... |
|
4-5 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
20-21 |
अंतर्मु. |
पर्याप्त होकर इतने काल से पहले न मरे |
3पल्य+7को.पू. |
कर्मभूमिज में भ्रमणकाल 7को.पू./फिर भोगभूमिज |
|
मनुष्य ल.अप. |
... |
|
6-8 |
क्षुद्रभव |
... |
पल्य/असं. |
संतान क्रम |
|
23-24 |
क्षुद्रभव |
कदलीघात से मरण कर पर्याय परिवर्तन |
अंतर्मु. |
भ्रमण |
|
मार्गणा |
गुणस्थान |
नाना जीवापेक्षया |
एक जीवापेक्षया |
|||||||||||
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
|||||
नं.1 |
नं.2 |
नं.1 |
नं.3 |
|||||||||||
|
|
सू. |
सू. |
|
|
|
|
सू. |
सू. |
|
|
|
|
|
मनुष्य सामान्य |
1 |
68 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
69-70 |
अंतर्मु. |
3,4,5वें से 1ला, पुन: 3,4या 5 |
3पल्य+47को.पू.+अंतर्मुहूर्त |
तीनों वेदों में से प्रत्येक 8को.पू.=24को.पू.; फिर ल.अप.में अंत.; फिर स्त्री व नपुं.वेद में 8,8को.पू.=16को.पू.;फिर पुरुषवेद में 7को.पू.इस प्रकार 47को.पू.कर्मभूमि में भ्रमण कर भोगभूमि में उपजे |
|
|
2 |
71-72 |
|
1 समय |
उप.सम्य.7,8,मनुष्य का सम्य.में 1समय शेष रहते युग.प्रवेश |
अंतर्मु. |
संख्यातमनु.का उप. सम्य.में 6आव.शेष रहते युग.प्रवेश |
73-74 |
|
1समय |
उपशम सम्यक्त्व में 1समय काल शेष रहने पर सासादन में प्रवेश |
6 आवली |
उपशम सम्यक्त्व में 6 आवली काल शेष रहने पर सासादन में प्रवेश |
|
|
3 |
75-76 |
|
अंतर्मु. |
28/ज.1,4,5,6ठे से पीछे आये सं.मनु.युगपत् लौटे |
अंतर्मु. |
जघन्यवत् |
77-78 |
|
अंतर्मु. |
28/ज.1,4,5,6ठे से 3रे में आ., अंतर्मु.वहाँ रह पुन: लौट जायें |
अंतर्मुहूर्त |
जघन्यवत् |
|
मनुष्य सामान्य |
4 |
79 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
80-82 |
|
अंतर्मु. |
28/ज.1,3,5,6ठे से 4थे में आ.पुन: लौटकर गुणस्थान परिवर्तन करे |
3पल्य+देशोन पूर्व कोड़ |
1को.पू.में त्रिभाग शेष रहने पर मनुष्यायु को बाँध क्षायिक सम्यक्त्वी हो भोगभूमि में उपजे। |
|
|
5-14 |
82 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
82 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
|
मनुष्य पर्याप्त |
1-14 |
68-82 |
|
|
मनुष्य सामान्यवत् |
|
|
68-82 |
|
|
मनुष्य सामान्यवत् |
|
|
|
मनुष्यणी |
1-3 |
68-78 |
|
|
मनुष्य सामान्यवत् |
|
|
68-78 |
|
|
मनुष्य सामान्यवत् |
|
|
|
|
4 |
79 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
80-81 |
|
अंतर्मु. |
मनुष्य सामान्यवत् |
3पल्य–9मास व 49दिन |
28/ज. भोगभूमिया मनुष्यणी हो 9मास गर्भ में रह 49दिन में पर्याप्ति पूर्ण कर सम्यक्त्वी हो। |
|
|
5-14 |
82 |
|
|
मनुष्य सामान्यवत् |
|
|
82 |
|
|
मनुष्य सामान्यवत् |
|
|
|
मनुष्य ल. अप. |
1 |
83-84 |
|
क्षुद्रभव |
अनेक जीवों का युगपत् प्रवेश व निर्गमन |
पल्य/अ. |
संतति क्रम न टूटे |
85-86 |
|
क्षुद्रभव |
परिभ्रमण |
अंतर्मुहूर्त |
परिभ्रमण |
|
मार्गणा |
गुणस्थान |
नाना जीवापेक्षया |
एक जीवापेक्षया |
|||||||||||
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
|||||
नं.1 |
नं.2 |
नं.1 |
नं.3 |
|||||||||||
|
|
सू. |
सू. |
|
|
|
|
सू. |
सू. |
|
|
|
|
|
4. देवगति— |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
देव सामान्य |
|
|
9-10 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
26 -27 |
10,000 वर्ष |
देव की जघन्य आयु |
33 सागर |
देव की उत्कृष्ट आयु |
|
भवनवासी |
|
|
11 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
29-30 |
10,000 वर्ष |
देव की जघन्य आयु |
1<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0014.gif" alt="" width="9" height="38" /> सागर |
देव की उत्कृष्ट आयु |
|
व्यंतर |
|
|
11 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
29-30 |
10,000 वर्ष |
देव की जघन्य आयु |
1<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0015.gif" alt="" width="9" height="38" /> पल्य |
देव की उत्कृष्ट आयु |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
( धवला/14/331 ) |
आ./असं |
सोपक्रम काल |
12 मुहूर्त |
अनुपक्रम काल |
|
|
ज्योतिषी |
|
|
11 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
29-30 |
<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0016.gif" alt="" width="9" height="38" /> पल्य |
जघन्य आयु |
<img src="JSKHtmlSample_clip_image004_0000.gif" alt="" width="78" height="49" /> |
उत्कृष्ट आयु |
|
सौधर्म से सहस्रार |
|
|
11 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
32-33 |
<img src="JSKHtmlSample_clip_image006_0000.gif" alt="" width="73" height="49" /> |
क्रमश: प्रत्येक युगल में |
2<img src="JSKHtmlSample_clip_image012_0011.gif" alt="" width="18" height="38" />सा.-18<img src="JSKHtmlSample_clip_image012_0012.gif" alt="" width="18" height="38" />सा. |
प्रत्येक युगल में क्रमश: |
|
आनत-अच्युत |
|
|
11 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
35-36 |
18<img src="JSKHtmlSample_clip_image018_0000.gif" alt="" width="22" height="38" />20सा. |
दो युगलों में क्रमश: 18<img src="JSKHtmlSample_clip_image012_0016.gif" alt="" width="18" height="38" />व 20 सागर |
20 सा. 22 सा. |
दोनों युगलों में क्रमश: 20 व 22 सागर |
|
नव ग्रैवेयक |
|
|
11 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
35-36 |
22-30 सा. |
प्रत्येक ग्रैवेयक में क्रमश: 22,23,24,25,26 ,27,28,29,30 सागर |
23 से 31 सागर |
प्रत्येक ग्रैवेयक में क्रमश: 23,24,25,26 ,27,28,29,30,31 सागर |
|
नव अनुदिश |
|
|
11 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
35-36 |
31 सागर |
प्रत्येक में बराबर |
32 सागर |
प्रत्येक में बराबर |
|
विजय से अपराजित |
|
|
11 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
35-36 |
32 सागर |
प्रत्येक में बराबर |
33 सागर |
प्रत्येक में बराबर |
|
सर्वार्थ सिद्धि |
|
|
11 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
38 |
33 सागर |
|
33 सागर |
|
|
देव सामान्य |
1 |
87 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
88-89 |
|
अंतर्मु. |
28/ज. 3,4थे से 1ले में गुणस्थान परिवर्तन करे |
31 सागर |
उपरिम ग्रैवेयक में जा मिथ्यात्व सहित रहे। |
|
|
2-3 |
90 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
90 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
|
|
4 |
91 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
91-92 |
|
अंतर्मु. |
1,3रे से 4थे में जा स्थान परिवर्तन करे |
33 सागर |
सर्वार्थ सिद्धि में जा सम्यक्त्व सहित रहे |
|
भवनवासी |
1 |
94 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
95-96 |
|
अंतर्मु. |
1,3रे से 4थे में जा स्थान परिवर्तन करे |
1 सागर+पल्य/असंख्यात |
मिथ्यात्व सहित कुल काल बिताया। |
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2-3 |
97 |
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मूलोघवत् |
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97 |
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मूलोघवत् |
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मार्गणा |
गुणस्थान |
नाना जीवापेक्षया |
एक जीवापेक्षया |
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प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
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नं.1 |
नं.2 |
नं.1 |
नं.3 |
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सू. |
सू. |
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सू. |
सू. |
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भवनवासी |
4 |
94 |
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सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
95-96 |
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अंतर्मुहूर्त |
देव सामान्यवत् स्थान परि. |
1<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0017.gif" alt="" width="9" height="38" /> सागर–1 अंत. 1<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0018.gif" alt="" width="9" height="38" /> सा.–4 अंत. |
सम्यक्त्व सहित पूरा काल बितावें संयत मनुने वैमानिक की आयु बाँधी पीछे अपवर्तना घात द्वारा भवनवासी की रह गयी। वहाँ 6 पर्याप्ति प्राप्तकर सम्यक्त्वी हो रहा। |
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व्यंतर |
1 |
94 |
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सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
95-96 |
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अंतर्मुहूर्त |
देव सामान्यवत् स्थान परि. |
1<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0019.gif" alt="" width="9" height="38" /> पल्य-1अंत. |
मिथ्यात्व सहित पूर्ण काल बिताया |
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2-3 |
97 |
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— |
मूलोघवत् |
— |
— |
97 |
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— |
मूलोघवत् |
— |
— |
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4 |
94 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
95-96 |
|
अंतर्मु. |
देव सामान्यवत् स्थान परि. |
1<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0020.gif" alt="" width="9" height="38" /> पल्य-4अंत. |
भवनवासीवत् |
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ज्योतिषी |
1-4 |
94-97 |
— |
— |
व्यंतरवत् |
— |
— |
95-97 |
— |
व्यंतरवत् |
— |
— |
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सौधर्म-सहस्रार |
1 |
94 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
95-96 |
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अंतर्मु. |
देव सामान्यवत् स्थान परि. |
पल्य/असं.अधिक 2-18सागर |
अद्धायुष्क की अपेक्षा (मिथ्यात्व से अद्धायु का अपवर्तना घात कर मरे तो) क्रमश: 2,7,10,14,16,18सागर+पल्य/असं. |
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2-3 |
97 |
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— |
मूलोघवत् |
— |
— |
97 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
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|
4 |
94 |
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सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
95-96 |
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अंतर्मु. |
देव सामान्यवत् स्थान परि. |
क्रमश: अंत.कम 2<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0021.gif" alt="" width="9" height="38" />, 18<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0022.gif" alt="" width="9" height="38" /> |
क्रमश: 2<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0023.gif" alt="" width="9" height="38" />, 7<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0024.gif" alt="" width="9" height="38" />, 10<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0025.gif" alt="" width="9" height="38" />, 14<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0026.gif" alt="" width="9" height="38" />, 16<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0027.gif" alt="" width="9" height="38" />, 18<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0028.gif" alt="" width="9" height="38" /> सागर से अंतर्मु. कम |
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आनत-अच्युत |
1 |
98 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
99-100 |
अंतर्मु. |
देव सामान्यवत् स्थान परि. |
क्र. 20 व 22 सा. |
उत्कृष्ट आयु पर्यंत वहाँ रहे |
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2-3 |
101 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
101 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
|
|
4 |
98 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
99-100 |
|
अंतर्मु. |
देव सामान्यवत् स्थान परि. |
क्र. 20 व 22 सा. |
उत्कृष्ट आयु पर्यंत वहाँ रहे |
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नव ग्रैवेयक |
1 |
98 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
99-100 |
|
अंतर्मु. |
देव सामान्यवत् स्थान परि. |
क्र. 23-31 सा. |
नौ ग्रैवेयकों में क्रमश: 23,24,25,26,27,28,29,30 व31 सागर |
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2-3 |
101 |
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— |
मूलोघवत् |
— |
— |
101 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
|
|
4 |
98 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
99-100 |
|
अंतर्मु. |
देव सामान्यवत् स्थान परि. |
क्र. 23-31 सा. |
इसी के 1ले गुणस्थानवत् |
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नव अनुदिश |
4 |
102 |
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सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
103-104 |
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31 सा.+1 समय |
मिथ्यात्व गुणस्थान का अभाव |
32 सागर |
उत्कृष्ट आयु |
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विजय अपराजित |
4 |
102 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
103-104 |
|
32 सागर |
मिथ्यात्व गुणस्थान का अभाव |
33 सागर |
उत्कृष्ट आयु |
|
सर्वार्थ सिद्धि |
4 |
105 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
106 |
|
33 सागर |
जघन्य उत्कृष्ट दोनों समान |
33 सागर |
उत्कृष्ट आयु |