जैनधर्म
From जैनकोष
आत्म धर्म । यह कुमतिभेदी, पुण्य का साधक, दुःख मोचक सुखविस्तारक और स्वर्ग तथा मोक्ष सुख का प्रदाता जिनेंद्र प्रणीत धर्म है । महापुराण 5.145,296,6.22, 10. 106-109, पद्मपुराण 88. 13-14, हरिवंशपुराण 1.1
आत्म धर्म । यह कुमतिभेदी, पुण्य का साधक, दुःख मोचक सुखविस्तारक और स्वर्ग तथा मोक्ष सुख का प्रदाता जिनेंद्र प्रणीत धर्म है । महापुराण 5.145,296,6.22, 10. 106-109, पद्मपुराण 88. 13-14, हरिवंशपुराण 1.1