प्रारंभक्रिया
From जैनकोष
आस्रव की पच्चीस क्रियाओं में एक क्रिया । इसमें दूसरों के द्वारा किये जाने वाले आरंभ में प्रमादी होकर स्वयं हर्ष मानना अथवा छेदन-भेदन आदि क्रियाओं में अत्यधिक तत्पर रहना समाविष्ट है । हरिवंशपुराण 58.79
आस्रव की पच्चीस क्रियाओं में एक क्रिया । इसमें दूसरों के द्वारा किये जाने वाले आरंभ में प्रमादी होकर स्वयं हर्ष मानना अथवा छेदन-भेदन आदि क्रियाओं में अत्यधिक तत्पर रहना समाविष्ट है । हरिवंशपुराण 58.79