ग्रन्थ:बोधपाहुड़ गाथा 24
From जैनकोष
सो देवो जो अत्थं धम्मं कामांशुदेइ णाणं च ।
सो दइ जस्स अत्थि हु अत्थो धम्मो य पवज्ज ॥२४॥
स: देव: य: अर्थं धर्मं कामं सुददाति ज्ञानं च ।
स: ददाति यस्य अस्ति तु अर्थ: धर्म: च प्रव्रज्या ॥२४॥
(८) आगे देव का स्वरूप कहते हैं ।
हरिगीत
धर्मार्थ कामरु ज्ञान देवे देव जन उसको कहें ।
जो हो वही दे नीति यह धर्मार्थ कारण प्रव्रज्या ॥२४॥
‘देव’ उसको कहते हैं जो अर्थ अर्थात् धन, धर्म, काम अर्थात् इच्छा का विषय - ऐसा भोग और मोक्ष का कारण ज्ञान इन चारों को देवे । यहाँ न्याय ऐसा है कि जो वस्तु जिसके पास हो सो देवे और जिसके पास जो वस्तु न हो सो कैसे देवे ? इस न्याय से अर्थ, धर्म, स्वर्गादिक के भोग और मोक्षसुख का कारण प्रव्रज्या अर्थात् दीक्षा जिसके हो उसको ‘देव’ जानना ॥२४॥