सामान्य परिचय
तीर्थंकर क्रमांक |
22 |
चिह्न |
शङ्क |
पिता |
समुद्रविजय |
माता |
शिवदेवी |
वंश |
यादव |
उत्सेध (ऊँचाई) |
10 धनुष |
वर्ण |
नील |
आयु |
1000 वर्ष |
पूर्व भव सम्बंधित तथ्य
पूर्व मनुष्य भव |
सुप्रतिष्ठ |
पूर्व मनुष्य भव में क्या थे |
मण्डलेश्वर |
पूर्व मनुष्य भव के पिता |
सुनन्द |
पूर्व मनुष्य भव का देश, नगर |
जम्बू भरत हस्तनागपुर |
पूर्व भव की देव पर्याय |
जयन्त |
गर्भ-जन्म कल्याणक सम्बंधित तथ्य
गर्भ-तिथि |
कार्तिक शुक्ल 6 |
गर्भ-नक्षत्र |
उत्तराषाढा |
गर्भ-काल |
अन्तिम रात्रि |
जन्म तिथि |
श्रावण शुक्ल 6 |
जन्म नगरी |
द्वारावती |
जन्म नक्षत्र |
चित्रा |
योग |
ब्रह्म |
दीक्षा कल्याणक सम्बंधित तथ्य
वैराग्य कारण |
जातिस्मरण |
दीक्षा तिथि |
श्रावण शुक्ल 6 |
दीक्षा नक्षत्र |
चित्रा |
दीक्षा काल |
अपराह्न |
दीक्षोपवास |
तृतीय भक्त |
दीक्षा वन |
सहकार |
दीक्षा वृक्ष |
मेषशृंग |
सह दीक्षित |
2000 |
ज्ञान कल्याणक सम्बंधित तथ्य
केवलज्ञान तिथि |
आश्विन शुक्ल 1 |
केवलज्ञान नक्षत्र |
चित्रा |
केवलोत्पत्ति काल |
पूर्वाह्न |
केवल स्थान |
गिरनार |
केवल वृक्ष |
मेषशृंग |
निर्वाण कल्याणक सम्बंधित तथ्य
योग निवृत्ति काल |
1 मास पूर्व |
निर्वाण तिथि |
आषाढ़ कृष्ण 8 |
निर्वाण नक्षत्र |
चित्रा |
निर्वाण काल |
सायं |
निर्वाण क्षेत्र |
उर्जयन्त |
समवशरण सम्बंधित तथ्य
समवसरण का विस्तार |
1 1/2 योजन |
सह मुक्त |
536 |
पूर्वधारी |
400 |
शिक्षक |
11800 |
अवधिज्ञानी |
1500 |
केवली |
1500 |
विक्रियाधारी |
1100 |
मन:पर्ययज्ञानी |
900 |
वादी |
800 |
सर्व ऋषि संख्या |
18000 |
गणधर संख्या |
11 |
मुख्य गणधर |
वरदत्त |
आर्यिका संख्या |
40000 |
मुख्य आर्यिका |
यक्षिणी |
श्रावक संख्या |
100000 |
मुख्य श्रोता |
उग्रसेन |
श्राविका संख्या |
300000 |
यक्ष |
पार्श्व |
यक्षिणी |
कूष्माण्डी |
आयु विभाग
आयु |
1000 वर्ष |
कुमारकाल |
300 वर्ष |
विशेषता |
त्याग |
छद्मस्थ काल |
56 दिन |
केवलिकाल |
699 वर्ष 10 मास 4 दिन |
तीर्थ संबंधी तथ्य
जन्मान्तरालकाल |
509000 वर्ष |
केवलोत्पत्ति अन्तराल |
84380 वर्ष 2 मास 4 दिन |
निर्वाण अन्तराल |
83750 वर्ष |
तीर्थकाल |
84380 वर्ष |
तीर्थ व्युच्छित्ति |
❌ |
शासन काल में हुए अन्य शलाका पुरुष |
चक्रवर्ती |
ब्रह्मदत्त |
बलदेव |
पद्म |
नारायण |
कृष्ण |
प्रतिनारायण |
जरासिंध |
रुद्र |
❌ |
—( महापुराण/70/ श्लो.नं.पूर्व भव नं.6 में पुष्करार्ध द्वीप के पश्चिम मेरु के पास गंधित देश, विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में सूर्यप्रभ नगर के राजा सूर्यप्रभ के पुत्र चिंतागति थे।26-28। पूर्वभव नं.5 में चतुर्थ स्वर्ग में सामानिक देव हुए।36-37। पूर्वभव नं.4 में सुगंधिला देश के सिंहपुर नगर के राजा अर्हदास के पुत्र अपराजित हुए।41। पूर्वभव नं.3 में अच्युत स्वर्ग में इंद्र हुए।50। पूर्वभव नं.2 में हस्तिनापुर के राजा श्रीचंद्र के पुत्र सुप्रतिष्ठ हुए।51। और पूर्वभव में जयंत नामक अनुत्तर विमान में अहमिंद्र हुए।59। ( हरिवंशपुराण/34/17-43 ); ( महापुराण/72/277 में युगपत् सर्व भव दिये हैं। वर्तमान भव में 22वें तीर्थंकर हुए–देखें तीर्थंकर - 5।
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