रश्मिवेग
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
महापुराण/73/ श्लोक पुश्कलावती देश के विजयार्ध पर त्रिलोकोत्तम नगर के राजा विद्युद्गति का पुत्र था । दीक्षा ग्रहण कर सर्वतोभद्र के उपवास ग्रहण किये । एक समय समाधियोग में बैठे हुए इनको पूर्व भव के भाई कमठ के जीव ने अजगर बनकर निगल लिया । (31-25)। यह पार्श्वनाथ भगवान् का पूर्व का छठा भव है ।−देखें पार्श्वनाथ ।
पुराणकोष से
(1) पुष्पपुर नगर के राजा सूर्यावर्त और रानी यशोधरा का पुत्र । यह चारणऋद्धिधारी मुनि हरिचंद्र से धर्म का स्वरूप सुनकर उन्हीं से दीक्षित हो गया था । शीघ्र ही इसने आकाशचारणऋद्धि भी प्राप्त कर ली थी । कांचनगुहा में एक अजगर ने इसे पूर्व बैरवश निगल लिया था । अत: अंत में संन्यासपूर्वक मरण करके यह कापिष्ठ-स्वर्ग के अर्कप्रभ-विमान मै देव हुआ । महापुराण 59.231-238, हरिवंशपुराण 27.80-87
(2) रथनूपुर के राजा अमिततेज ने अपने बैरी विद्याधर अशनिघोष को मारने अपने बहनोई विजय के साथ इसे और इसके अन्य भाइयों को भेजा था । महापुराण 62.241, 272-275
(3) जंबूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश के त्रिलोकोत्तम नगर के राजा विष्णु दुर्गति और रानी विद्युन्माला का पुत्र । यह अपनी युवा अवस्था में ही समाधिगुप्त मुनिराज से दीक्षित हो गया था हिमगिरि की एक गुफा में योग में लीन स्थिति मे एक अजगर इसे निगल गया था । समाधिपूर्वक मरने से यह अच्छत स्वर्ग के पुष्कर-विमान मे देव हुआ । महापुराण 73.25-30