पूर्वगत
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
- दृष्टि प्रवाद अंग का चौथा भेद - देखें श्रुतज्ञान - III.1।
- धवला 1/1,1,2/114/7 पुव्वाणं गयं पत्त-पुव्व-सरूवं वा पुव्वगय-गिदि। = जो पूर्वों को प्राप्त हो, अथवा जिसने पूवो के स्वरूप को प्राप्त कर लिया हो, उसे पूर्वगत कहते हैं।
पुराणकोष से
श्रुतज्ञान के बारहवें दृष्टिवाद अंग का पाँचवाँ भेद । हरिवंशपुराण 2. 95-100