भूषण
From जैनकोष
कांपिल्य नगर के धनिक वैश्य धनद और उसकी पत्नी वारुणी का पुत्र । इसके पिता को किसी निमित्तज्ञानी ने इसके दीक्षित होने की भविष्यवाणी की थी । एक मात्र पुत्र होने से यह दीक्षित न हो सके । इसके लिए पिता ने इसे रहने को एक पृथक् भवन बुलवाया था । यह एक दिन मुनींद्र श्रीधर को अपने महल के पास आया जानकर उनकी वंदना के लिए महल से नीचे आ रहा था कि किसी सर्प ने इसे काट लिया जिससे यह मरकर माहेंद्र स्वर्ग में देव हुआ तथा वहाँ से चयकर पुष्करद्वीप के चंद्रादित्य नगर में राजा प्रकाशयश का पुत्र हुआ । पद्मपुराण 85.85-96