स्वामित्व
From जैनकोष
1. स्वामित्व का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/1/7/22/3 स्वामित्वमाधिपत्यम् ।
सर्वार्थसिद्धि/1/25/132/4 स्वामी प्रयोक्ता।=स्वामी का अर्थ अधिष्ठाता है ( राजवार्तिक/1/7/-/38/2 ), (अवधि व मन:पर्यय ज्ञान के अर्थ में) स्वामी का अर्थ प्रयोक्ता है ( राजवार्तिक/1/25/-/86/9 )।
2. अष्टकर्म बन्ध के स्वामियों की ओघ आदेश प्ररूपणा
(म.बं./पु.सं.), ( धवला/ पु.सं./पृ.सं.)
प्रकृति |
विषय |
उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट |
भुजगार आदि पद |
ज.उ.वृद्धि हानि |
असंख्यात भागादि वृद्धि |
सामान्य |
1. प्रकृति बन्ध |
||||||
मूल उत्तर |
बन्धक सामान्य |
|
|
|
|
|
2. स्थिति बन्ध |
||||||
मूल. |
काल सामान्य |
धवला 11/87-136 |
|
|
|
धवला 11/87 |
मूल. |
ओघ आदेश |
|
||||
उत्तर |
ओघ आदेश |
|
||||
मूल उत्तर |
साता असाता के 2,3,4 स्थानीय अनुभाग बंधक जीवों की अपेक्षा |
धवला 11/316 |
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|
|
3. अनुभाग बन्ध |
||||||
मूल |
ओघ आदेश |
|
||||
उत्तर |
ओघ आदेश |
|
||||
|
बन्धक के भाव |
धवला 12/13 |
|
|
|
|
उत्तर |
कालों में अल्पबहुत्व |
|
|
|
धवला 12/211 |
|
उत्तर |
स्थानों में अल्पबहुत्व |
|
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षट्खंडागम/12/256-267/214 |
|
4. प्रदेश बन्ध |
||||||
मूल |
ओघ आदेश |
|
|
|||
उत्तर |
ओघ आदेश |
|
|
|
|
|
5. विशेष |
विषय |
उत्कृष्ट |
अनुत्कृष्ट |
जघन्य |
अजघन्य |
|
ज्ञानावरणीय |
मूल |
प्रदेश संचय |
धवला 10/31 |
धवला 10/210 |
धवला 10/268 |
धवला 10/299 |
दर्शनावरणीय |
मूल |
प्रदेश संचय |
|
|
धवला 10/312 |
धवला 10/314 |
वेदनीय |
मूल |
प्रदेश संचय |
|
|
धवला 10/316 |
धवला 10/327 |
मोहनीय |
मूल |
प्रदेश संचय |
|
|
धवला 10/312 |
धवला 10/314 |
आयु |
मूल |
प्रदेश संचय |
धवला 10/225 |
धवला 10/255 |
धवला 10/330 |
धवला 10/336 |
नाम, गोत्र |
मूल |
प्रदेश संचय |
|
|
धवला 10/330 |
धवला 10/330 |
अन्तराय |
मूल |
प्रदेश संचय |
|
|
धवला 10/312 |
धवला 10/314 |
प्रकृति |
विषय |
उत्कृष्ट |
अनुत्कृष्ट |
जघन्य |
अजघन्य |
1 ज्ञानावरणीय मूल |
क्षेत्र या अवगाहना |
धवला 11/14 |
धवला 11/23 |
धवला 11/33 |
धवला 11/33 |
2,4,8 दर्शना.मोहनीय अन्तराय मूल |
क्षेत्र या अवगाहना |
धवला 11/29 |
धवला 11/29 |
धवला 11/53 |
धवला 11/53 |
3 वेदनीय मूल |
क्षेत्र या अवगाहना |
धवला 11/29 |
धवला 11/33 |
धवला 11/53 |
धवला 11/53 |
5-7 आयु, नाम, गोत्र |
क्षेत्र या अवगाहना |
धवला 11/33 |
धवला 11/33 |
धवला 11/53 |
धवला 11/53 |
3. मोहनीय कर्म सत्त्व के स्वामित्व विषयक ओघ आदेश प्ररूपणा– ( कषायपाहुड़/ पु.सं. /)
सं. |
मूल या उत्तर |
विषय |
उत्कृष्टानुत्कृष्ट |
भुजगारादि पद |
ज.उ.वृद्धि हानि |
षट्स्थान वृद्धि-हानि |
स्वामित्व सामान्य |
1 |
प्रकृति सत्त्व |
||||||
1 |
|
राग व द्वेष भाव |
|
|
|
|
|
|
सामान्य |
कर्म सत्ता व असत्ता सामान्य |
|
|
|
|
|
|
मूल |
कर्म सत्त्व असत्त्व |
|
|
|
|
|
|
उत्तर |
कर्म सत्त्व व असत्त्व |
|
|
|
|
|
|
उत्तर |
परस्पर सन्निकर्ष |
|
|
|
|
|
|
उत्तर |
28,24,23 आदि स्थानों की समुत्कीर्तना |
|||||
2 |
स्थिति सत्त्व |
||||||
1 |
मूल |
|
|
||||
2 |
उत्तर |
|
|
||||
3 |
अनुभाग सत्त्व |
||||||
1 |
मूल |
|
|
||||
2 |
उत्तर |
|
|
|
4. अष्ट कर्म उदीरणा के स्वामित्व विषयक ओघ आदेश प्ररूपणा ( धवला 15/ पृष्ठ सं.)
क्र. |
प्रकृति |
मूल व उत्तर |
जघन्य उत्कृष्ट |
भुजगारादि पद |
ज.उ.वृद्धि हानि |
स्वामित्व सामान्य |
भंगों या स्थानों का स्वामित्व |
1 |
प्रकृति उदीरणा |
||||||
1 |
अष्ट कर्म |
मूल |
46-48 |
51 |
53 |
44-46 |
48 |
2 |
ज्ञाना., दर्शना. |
उत्तर |
81-83 |
97-99 |
100 |
54-61 |
|
3 |
वेदनीय, मोहनीय |
उत्तर |
81-83 |
97-99 |
100 |
|
81-83 |
4 |
आयु, नाम |
|
86-96 |
97-99 |
100 |
|
81-83 |
5 |
गोत्र, अन्तराय |
उत्तर |
97 |
97-99 |
100 |
|
86-96,97 |
2 |
स्थिति उदीरणा |
||||||
1 |
अष्टकर्म |
मूल |
104-118 |
|
|
|
|
3 |
अनुभाग उदीरणा |
||||||
1 |
अष्टकर्म |
मूल |
176-190 |
|
237-249 |
|
|
4 |
प्रदेश उदीरणा |
||||||
1 |
अष्टकर्म |
मूल |
253-261 |
|
264-271 |
|
|
5. अष्टकर्मोदय स्वामित्व सम्बन्धी ओघ आदेश प्ररूपणा ( धवला 15/ पृष्ठ सं.)
सं. |
प्रकृति |
मूल व उत्तर |
उत्कृष्टानुत्कृष्ट |
भुजगारादि पद |
ज.उ.वृद्धि हानि |
षट्स्थान वृद्धि-हानि |
स्वामित्व सामान्य |
1 |
प्रकृति उदय |
||||||
1 |
अष्टकर्म |
मूल |
|
|
|
|
285 |
|
|
उत्तर |
|
|
|
|
285-288 |
2 |
स्थिति उदय |
||||||
1 |
अष्टकर्म |
मूल |
290 |
294 |
295 |
295 |
|
|
|
उत्तर |
|
295 |
295 |
295 |
|
3 |
अनुभाग उदय |
||||||
1 |
अष्टकर्म |
मूल |
295 |
295 |
295 |
295 |
|
|
|
उत्तर |
295-296 |
295-296 |
295-296 |
295-296 |
|
4 |
प्रदेश उदय |
||||||
1 |
अष्टकर्म |
मूल |
296 |
296 |
296 |
296 |
|
|
|
उत्तर |
297-309 |
325 |
332-334 |
× |
|
6. अन्य विषयों के स्वामित्व सम्बन्धी ओघ आदेश प्ररूपणा ( धवला 15/ पृष्ठ सं.)
सं. प्रकृति |
विषय |
उत्कृष्टानुत्कृष्ट पद |
भुजगारादि पद |
ज.उ.वृद्धि हानि |
स्वामित्व सामान्य |
1. मूलोत्तर प्रकृति |
उपशमना |
|
280 |
|
276-278 |
|
संक्रमण |
283-284 |
|
||
2. मूलोत्तर स्थिति |
उपशमना |
281 |
|
||
|
संक्रमण |
283-284 |
|
||
3. मूलोत्तर अनुभाग |
उपशमना |
282 |
|
||
|
संक्रमण |
283-284 |
|
||
4. मूलोत्तर प्रदेश |
उपशमना |
282 |
|
||
|
संक्रमण |
283-284 |
|
7. अन्य संबंधित विषय
- पाँचों शरीर की जघन्योत्कृष्ट संघातन परिशातन कृति के स्वामित्व की ओघादेश प्ररूपणा-( षट्खंडागम/9/ सू.71/329-346)।
- पाँच शरीरों में बंध को प्राप्त वर्गणाओं में ज.उ.विस्रसोपचयों के स्वामित्व की ओघ आदेश प्ररूपणा-( धवला 14/559-562 )।