अवगाहन
From जैनकोष
1. सर्व द्रव्यों में अवगाहन गुण :
कार्तिकेयानुप्रेक्षा / मूल या टीका गाथा 214-215 सव्वाणं दव्वाणं अवगाहणसत्ति अत्थि परमत्थं। जहभसमपाणियाणं जीव पएसाण बहुयाणं ॥214॥ जदि ण हवदि सा सत्ती सहावभूदा हि सव्वदव्वाणं। एक्केक्कासपएसे कहं ता सव्वाणि वट्टंति ॥215॥
= वास्तव में सभी द्रव्यों में अवकाश देने की शक्ति है। जैसे भस्म में और जल में अवगाहन शक्ति है, वैसे ही जीव के असंख्यात प्रदेशों में जानो ॥214॥ यदि सब द्रव्यों में स्वभावभूत अवगाहन शक्ति न होती हो एक आकाश के प्रदेशों में सब द्रव्य कैसे रहते ॥215॥
पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 186,181 यत्तत्तविसदृशत्वं जातेरनतिक्रमात् क्रमादेव। अवगाहनगुणयोगाद्देशांशानां सतामेव ॥186॥ अंशानामवगाहे दृष्टांतः स्वांशसंस्थितं ज्ञानम्। अतिरिक्तं न्यूनं वा ज्ञेयाकृति तन्मयान्न तु स्वांशैः ॥181॥
= जो उन परिणामों में विसदृशता होती रहती है, वह केवल सत्के अंशों के तदवस्थ रहते हुए भी, अपनी-अपनी जाति को उल्लंघन न करके, उस देश के अंशों में ही क्रम पूर्वक आकार से आकारांतर होने से होती है, जो कि अवगाहन गुण के निमित्त से होती है ॥186॥ जैसे कि ज्ञान अपने अंशों से ही अधिक न होते हुए भी, ज्ञेयाकार होने के कारण हीन-अधिक होता है ॥181॥
2. सिद्धोंका अवगाहन गुण-
परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 61/13 एक जीवावगाहप्रदेश अनंतजीववगाहदानसामर्थ्यंमवगाहनत्वं भण्यते।
= एक जीव के अवगाह क्षेत्र में अनंते जीव समा जायें, ऐसी अवकाश देने की सामर्थ्य अवगाहनगुण है।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 14/43/1 एकदीपप्रकाशे नानादीपप्रकाशवदेकसिद्धक्षेत्रे संकरव्यतिकरदोषपरिहारेणानंतसिद्धावकाशदानसामर्थ्यमवगाहनगुणो भण्यते।
= एक दीप के प्रकाश में जैसे अनेक दीपों का प्रकाश समा जाता है उसी तरह एक सिद्ध के क्षेत्र में संकर तथा व्यतिकर दोष से रहित जो अनंत सिद्धों को अवकाश देने की सामर्थ्य है वह अवगाहन गुण है।
• अवगाहन गुण की सिद्धि व लोकाकाश में इसका महत्त्व-देखें आकाश - 3।