किंपुरुष
From जैनकोष
- किंपुरुष देव का लक्षण—
ध.१३/५,५,१४०/३९१/८ प्रायेण मैथुनप्रिया: किंपुरुषा:। =प्राय: मैथुन में रूचि रखने वाले किंपुरुषज्ञ कहलाते हैं।
- * व्यन्तर देवों का एक भेद है— देखें - व्यन्तर / १ / २ ।
- किंपुरूष व्यन्तरदेव के भेद
ति.प./६/३६ पुरुसा पुरुसुत्तमसप्पुरुसमहापुरुसपभणामा। अतिपुरुसा तह मरुओ मरुदेवमरुप्पहा जसोवंता।३६। =पुरुष, पुरुषोत्तम, सत्पुरुष, महापुरुष, पुरुषप्रभ, अतिपुरुष, पुरु, पुरुदेव, मरुप्रभज्ञ और यशस्वान्, इस प्रकार ये किंपुरुष जाति के देवों के दश भेद हैं। (त्रि.सा./२५)
- * किंपुरुष देव का वर्ण परिवार व अवस्थानादि–दे० ‘व्यंतर’/२/१।
- * किंपुरुष व्यपदेश सम्बन्धी शंका समाधान
रा.वा./४/११/४/२१७/२१ क्रियानिमित्ता एवैता: संज्ञा:, ....किंपुरुषान् कामयन्त इति किंपुरुषा:। ...;तन्न किं कारणम्। उक्तत्वात्। उक्तमेतत्--अवर्णवाद एष देवानामुपरीति। कथम्। न हि ते शुचिवैक्रियकदेहा अशुच्यौदारिकशरीरान् नरान् कामयन्ते। =प्रश्न–कुत्सित पुरुषों की कामना करने के कारण किंपुरुष...आदि कारणों से ये संज्ञाएँ क्यों नहीं मानते? उत्तर–यह सब देवों का अवर्णवाद है। ये पवित्र वैक्रियक शरीर के धारक होते हैं वे कभी भी अशुचि औदारिक शरीरवाले मनुष्य आदि की कामना नहीं करते।
- धर्मनाथ भगवान् का एक यक्ष– देखें - तीर्थंकर / ५ / ३ ।