कृष्णराज
From जैनकोष
- ह.पु./६६/५२-५३; (ह.पु./प्र.५ पं. पन्नालाल) (स्याद्वाद सिद्धि/प्र./२५ पं. दरबारीलाल) दक्षिण लाट देश के राजा श्री वल्लभ के पिता थे। आपका नाम कृष्णराज प्रथम था। आपके दो पुत्र थे–श्रीवल्लभ और ध्रुवराज। आपका राज्य लाट देश में था तथा शत्रु भयंकर की उपाधि प्राप्त थी। बड़े पराक्रमी थे। आचार्य पुष्यसेन के समकालीन थे। गोविन्द प्रथम आपका दूसरा नाम था। समय–श.६७८-६९४; ई॰७५६-७७२ आता है। विशेष देखें - इतिहास / ३ / ४ ।
- कृष्णराज प्रथम के पुत्र ध्रुवराज के राज्य पर आसीन होने के कारण राजा अकालवर्ष का ही नाम कृष्णराज द्वितीय था (देखें - अकालवर्ष ) विशेष देखें - इतिहास / ३ / ४ ।
- यशस्तिलक/प्र. २० पं॰ सुन्दर लाल—राष्ट्रकूट देश का राठौर वंशी राजा था। कृष्णराज द्वि॰ (अकालवर्ष) का पुत्र था। इसलिए यह कृष्णराज तृतीय कहलाया। अकालवर्ष तृतीय को ही अमोघवर्ष तृतीय भी कहते हैं। (विशेष देखें - इतिहास / ३ / ४ ) यशस्तिलक चम्पूके कर्ता सोमदेव सूरि के समकालीन थे। समय–वि॰ १००२-१०२९ (ई॰९४५-९७२) अकालवर्ष के अनुसार (ई॰ ९१२-९७२) आना चाहिए।