क्षेत्र 04 -4
From जैनकोष
- अन्य प्ररूपणाएँ
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नं |
पद विशेष |
प्रकृति |
स्थिति |
अनुभाग |
प्रदेश |
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मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
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(१) |
अष्टकर्मों के बन्ध के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश क्षेत्र प्ररूपणा प्रमाण—(म.ब/पु.नं०/.../पृ०सं०) |
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१ |
ज.उ.पद |
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१/२८१-२९१/१८६-१९० |
२/१६१-१६९/९३-१०१ |
३/४७१-४७७/२१३-२१७ |
४/२०३-२०७/८७-९१ |
५/३३८-३४७/१४२-१५१ |
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२ |
भुजगारादि पद |
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२/३०९/१६२-१६३ |
३/७७२-४७४/३६५-३६७ |
४/२८९/१३४ |
५/५१०-५१२/२८३-२८५ |
६/१३१-१३२/६९-७१ |
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३ |
वृद्धि हानि |
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२/३९०/११७-१९८ |
३/९२९-९३२/४५३-४५५ |
५/३६३/१६५ |
५/६२०/३६५ |
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(२) |
अष्ट कर्म सत्त्व के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश क्षेत्र प्ररूपणा |
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१ |
ज. उ. पद |
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२ |
भुजगारादि पद |
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३ |
वृद्धि हानि |
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(३) |
मोहनीय के सत्व के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश क्षेत्र प्ररूपणा प्रमाण—(क.पा./पु.न./पृ. नं०...) |
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१ |
येज्ज दोस सामान्य |
१/३८३/३९८-३९९ |
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२ |
२४,२८ आदि स्थान |
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२/३६०-३६१/३२४-३२६ |
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३ |
ज. उ. पद |
२/७७-८०/५३-६० |
२/१७५/१६३-१६५ |
३/११२-११८/६४-६८ |
३/६१६-६२१/३६४-३६८ |
५/९८-१०२/६२-६५ |
५/३५७-३८५/३२६-३२७ |
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४ |
भुजगारादि पद |
२/४५३/४०८-४०९ |
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३/२०३-२०५/११६-११७ |
४/११४-११७/५९-६० |
५/१५५/१०३ |
५/४९६/२९०-२९१ |
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५ |
वृद्धि हानि |
२/५१५-५१७/४६३ |
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३/३०६-३०७/१६८-१६९ |
४/३७४/२३१ |
५/१८०/१२१ |
५/५५३/३२१ |
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(४) |
पाँचों शरीरों के योग्य स्कन्धों की संघातन परिशातन कृति के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश क्षेत्र प्ररूपणा (देखो ध.९/पृ.३६४-३७०) |
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(५) |
पाँचों शरीरों में २,३,४ आदि भंगों के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश क्षेत्र प्ररूपणा (देखो ध.१४/पृ.२५३-२५६) |
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(६) |
२३ प्रकार वर्गणाओं की जघन्य उत्कृष्ट क्षेत्र प्ररूपणा (देखो ष.खं. १४/सू १/पृ. १४९/१) |
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(७) |
प्रयोग, समवदान, अध:, तप, ईर्यापथ व कृति कर्म इन षट्कर्मों के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश क्षेत्र प्ररूपणा (देखो ध.९/पृ.३६४-३७०) |
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