ग्राम
From जैनकोष
(ति.प./४/१३९८) वइपरिवेढो गामो।=वृत्ति (बाड़) से वेष्टित ग्राम होता है।
(ध.१३/५,५,६४/३३६/३) (त्रि.सा./६७६)। म.पु./१६/१६४-१६६ ग्रामवृत्तिपरिक्षेपमात्रा: स्युरुचिता श्रिया:। शूद्रकर्षकभूयिष्ठा: सारामा: सजलाशया:।१६४। ग्रामा: कुलशतेनेष्ठो निकृष्ट: समधिष्ठित:। परस्तत्पच्चशत्या स्यात् सुसमृद्धकृषीबल:।१६५। क्रोशद्विक्रोशसीमानो ग्रामा: स्युरधमोत्तमा:। संपन्नसस्यसुक्षेत्रा: प्रभूतयवसोदका:।१६६।=जिसमें बाढ़ से घिरे हुए घर हों, जिसमें अधिकतर शूद्र और किसान लोग रहते हों, तथा जो बगीचा और तालाबों से सहित हों, उन्हें ग्राम कहते हैं।१६४। जिसमें सौ घर हों उसे छोटा गा̐व तथा जिसमें ५०० घर हों और जिसके किसान धन सम्पन्न हों उसे बड़ा गा̐व कहते हैं।१६५। छोटे गा̐व की सीमा एक कोस की और बड़े गा̐व की सीमा दो कोस की होती है।१६६।