आत्मख्याति
From जैनकोष
आ.अमृतचंद्र (ई.905-955) द्वारा संस्कृत भाषामें रचित समयसारकी टीका। यह टीका इतनी गंभीर है कि मानो आ.कुंदकुंदका हृदय ही हो। इस टीकामें आये हुए कलश रूप श्लोंको का संग्रह स्वयं `परमाध्यात्मतरंगिनी' नामके एक स्वतंत्र ग्रंथ रूपसे प्रसिद्ध हो गया है।
( तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा , पृष्ठ 2/415)