अवश
From जैनकोष
नियमसार / मूल या टीका गाथा /142 ण वसो अवसो
= जो अन्य के वश नहीं है, वह अवश है।
नियमसार / तात्पर्यवृत्तिगाथा 142 यो हि योगी स्वात्मपरिग्रहादन्येषां पदार्थानां वशं न गतः। अतएव अवश इत्युक्तः।
= जो योगी निजात्मा के परिग्रह के अतिरिक्त अन्य पदार्थों के वश नहीं होता है, इसीलिए जिसे अवश कहा जाता है।
समाधिशतक / मूल या टीका गाथा /37/236 अवशं विषयेंद्रियाधीनमनात्मायत्तमित्यर्थः।
= विषय व इंद्रियों के आधीन अनात्म पदार्थों का निमित्तपना अवश है अर्थात् अपने वश में नहीं है।