छल
From जैनकोष
- छल सामान्य का लक्षण
न्या.सू./मू./१-२/१० वचनविघातोऽर्थविकल्पोपपत्त्या छलम् । =वादी के वचन से दूसरा अर्थ कल्पनाकर उसके वचन में दोष देना छल है। (रा.वा./१/६/८/३६/३); (श्लो.वा.१/न्या.२७८/४३०/१९); (सि.वि./वृ./५/२/३१५/७); (स्या.म./१०/१११/१९); (स.भ.त./७९/११)
- छल के भेद
न्या.सू./मू./१-२/११ तत्त्रिविधं वाक्छलं सामान्यच्छलमुपचारच्छलं चेति।११। =वह तीन प्रकार का है–वाक्छल, सामान्य छल व उपचार छल। (श्लो.वा./४/न्या.२७८/४३०/२१), (सि.वि./वृ./५/२/३१७/१३); (स्या.म./१०/१११/१९)
- वाक्छल का लक्षण
न्या.सू./मू./१-२/१२ अविशेषाभिहितेऽर्थे वक्तुरभिप्रायादर्थान्तरकल्पना वाक्छलम् । यथा—
स्या.म./१०/१११/२१ नवकम्बलोऽयं माणवक इति नूतनविवक्षया कथिते, परा संख्यामारोप्य निषेधति कुतोऽस्य नव कम्बला: इति। =वक्ता के किसी साधारण शब्द के प्रयोग करने पर उसके विवक्षित अर्थ की जानबूझकर उपेक्षा कर अर्थान्तर की कल्पना करके वक्ता के वचन के निषेध करने को वाक्छल कहते हैं। जैसे वक्ता ने कहा कि इस ब्राह्मण के पास नवकम्बल है। यहा हम जानते हैं कि ‘नव’ कहने से वक्ता का अभिप्राय नूतन से है, फिर भी दुर्भावना से उसके वचनों का निषेध करने के लिए हम ‘नव’ शब्द का अर्थ ‘नौ संख्या‘ करके पूछते हैं कि इस ब्राह्मण के पास नौ कंबल कहा हैं। (श्लो.वा.४/न्या.२७९/४३१/१२), (सि.वि./वृ./५/२/३१७/१४) - सामान्य छल का लक्षण
न्या.सू./मू./१-२/१३/५० संभवतोऽर्थस्यातिसामान्ययोगादसंभूतार्थकल्पना सामान्यच्छलम् ।१२। न्या.सू./भा./१-२/१३/५०/४ अहो खल्वसौ ब्राह्मणो विद्याचरणसंपन्न इत्युत्ते कश्चिदाह संभवति ब्राह्मणे विद्याचरणसंपदिति। अस्य वचनस्य विघातोऽर्थविकल्पोपपत्त्या सभूतार्थकल्पनया क्रियते। यदि ब्राह्मणे विद्याचरणसंपत्संभवति व्रात्येऽपि संभवेत् व्रात्योऽपि ब्राह्मण: सोऽप्यस्तु विद्याचरणसंपन्न इति। =सम्भावना मात्र से कही गयी बात को सामान्य नियम बनाकर वक्ता के वचनों के निषेध करने को सामान्यछल कहते हैं। जैसे ‘आश्चर्य है, कि यह ब्राह्मण विद्या और आचरण से युक्त है,’ यह कहकर कोई पुरुष ब्राह्मण की स्तुति करता है, इस पर कोई दूसरा पुरुष कहता है कि विद्या और आचरण का ब्राह्मण में होना स्वाभाविक है। यहा यद्यपि ब्राह्मणत्व का सम्भावनामात्र से कथन किया गया है, फिर भी छलवादी ब्राह्मण में विद्या और आचरण के होने के सामान्य नियम बना करके कहता है, कि यदि ब्राह्मण में विद्या और आचरण का होना स्वाभाविक है, तो विद्या और आचरण व्रात्य (पतित) ब्राह्मण में भी होना चाहिए, क्योंकि व्रात्यब्राह्मण भी ब्राह्मण है। (श्लो.वा.४/न्या.२९९/४४५/४), (सि.वि./वृ./५/२/३१७/१९) - उपचारछल का लक्षण
न्या.सू./मू./१-२/१४/५१ धर्मविकल्पनिर्देशेऽर्थसद्भावप्रतिषेध उपचारच्छलम् ।१४।
न्या.सू./भा./१-२/१४/५१/७ यथा मञ्चा: क्रोशन्तीति अर्थसद्भावेन प्रतिषेध:। मञ्चस्था: पुरुषा: क्रोशन्ति न तु मञ्चा: क्रोशन्ति। =उपचार अर्थ में मुख्य अर्थ का निषेध करके वक्ता के वचनों को निषेध करना उपचार छल है। जैसे कोई कहे, कि मंच रोते हैं, तो छलवादी उत्तर देता है, कहीं मंच जैसे अचेतन पदार्थ भी रो सकते हैं, अतएव यह कहना चाहिए कि मंच पर बैठे हुए आदमी रोते हैं। (श्लो.वा.४/न्या.३०२/४४८/२१), (सि.वि./वृ./५/२/३१७/२६)