अविष्वग्भाव
From जैनकोष
स्याद्वादमंजरी श्लोक 16/217/24
अविष्वग्भावेनावयविनोऽवयवेषु वृत्तेः स्वीकारात्।
= प्रत्येक अवयवी अनेक अवयवों में अविष्वग्भाव रूप से अर्थात् अभेद रूप से स्वीकार किया गया है।
स्याद्वादमंजरी श्लोक 16/217/24
अविष्वग्भावेनावयविनोऽवयवेषु वृत्तेः स्वीकारात्।
= प्रत्येक अवयवी अनेक अवयवों में अविष्वग्भाव रूप से अर्थात् अभेद रूप से स्वीकार किया गया है।